tag:blogger.com,1999:blog-5124364116787353342.post3189791106553459508..comments2024-02-23T18:59:17.202+05:30Comments on डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंघवी: “ निराला काव्य की युगीन अर्थवत्ता ”डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंघवी http://www.blogger.com/profile/08377170647202100918noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5124364116787353342.post-61996519780803091062017-02-16T23:03:04.654+05:302017-02-16T23:03:04.654+05:30न जाने क्यूं
"जाने क्यूं
अब शर्म से,
चेहरे गु...न जाने क्यूं<br />"जाने क्यूं<br />अब शर्म से,<br />चेहरे गुलाब नही होते।<br />जाने क्यूं<br />अब मस्त मौला मिजाज नही होते।<br /><br />पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।<br />जाने क्यूं<br />अब चेहरे,<br />खुली किताब नही होते।<br /><br />सुना है<br />बिन कहे<br />दिल की बात<br />समझ लेते थे।<br />गले लगते ही<br />दोस्त हालात<br />समझ लेते थे।<br /><br />तब ना फेस बुक<br />ना स्मार्ट मोबाइल था<br />ना फेसबुक<br />ना ट्विटर अकाउंट था<br />एक चिट्टी से ही<br />दिलों के जज्बात<br />समझ लेते थे।<br /><br />सोचता हूं<br />हम कहां से कहां आ गये,<br />प्रेक्टीकली सोचते सोचते<br />भावनाओं को खा गये।<br /><br />अब भाई भाई से<br />समस्या का समाधान<br />कहां पूछता है<br />अब बेटा बाप से<br />उलझनों का निदान<br />कहां पूछता है<br />बेटी नही पूछती<br />मां से गृहस्थी के सलीके<br />अब कौन गुरु के<br />चरणों में बैठकर<br />ज्ञान की परिभाषा सीखे।<br /><br />परियों की बातें<br />अब किसे भाती है<br />अपनो की याद<br />अब किसे रुलाती है<br />अब कौन<br />गरीब को सखा बताता है<br />अब कहां<br />कृष्ण सुदामा को गले लगाता है<br />जिन्दगी मे<br />हम प्रेक्टिकल हो गये है<br />मशीन बन गये है सब<br />इंसान जाने कहां खो गये है! <br /> इंसान जाने कहां खो गये है..<br />🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸<br /><br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/05397967370377723539noreply@blogger.com