चित्तौड़ का जीवन-रस: गंभीरी और बेड़च

 चित्तौड़ का जीवन-रस: गंभीरी और बेड़च

कवर स्टोरी में प्रकाशित


अरावली की पर्वतीय उपत्यकाओं से आच्छादित, शोणित की धारा से सिंचित, गोरा-बादल और जयमल-फत्ता की हुँकारों से ऊर्जस्वित, भक्तिमती मीरा, वीरांगना पद्मिनी, त्यागमूर्ति पन्ना की पावन धरा चित्तौड़गढ़ विश्व-विख्यात नगरी है। चित्तौड़गढ, वह वीरभूमि है, जिसने समूचे भारत के सम्मुख अपूर्व शौर्य, विराट बलिदान और स्वातंत्र्य-प्रेम का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। बेड़च की लहरों में यहाँ के असंख्य वीरों ने अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए असिधारा रूपी तीर्थ में स्नान किया। वहीं वीरांगनाओं ने कई अवसर पर अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने बाल-बच्चों सहित जौहर की अग्नि में प्रवेश कर आदर्श उपस्थित किए। वीरों और वीरांगनाओं की स्मृति स्वरूप खड़े दुर्ग के ये स्मारक अपनी मूक भाषा में अतीत की गौरव गाथाएँ सुनाते दिखाई पड़ते हैं। स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे भारतवर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर देश-प्रेम का ज्वार उत्पन्न करने में अपनी भूमिका आज भी अदा करती है।

इस नगरी को जीवन-रस से सिंचित किया है- गंभीरी और बेड़च ने। जिसके रस से आप्लावित यहाँ का पौरूष इतिहास, सभ्यता, संस्कृति, साहित्य एवं आध्यात्मिक विरासत के पटल पर हमें अपूर्व गौरव प्रदान करता है। राजस्थान को प्रकृति द्वारा प्रदत्त जीवनदायिनी जलधाराएँ प्रदान करने वाली बेड़च और गंभीरी नदियाँ चित्तौड़गढ शहर के मध्य से गुजरती हैं। अतीत के जिस गौरव पर हम अभिमान करते हैं, यह गौरव-रस इन्हीं नदियों के किनारे फलित हुआ और संभवतः वैभवशाली इतिहास का साक्षी भी बना। इन दोनों नदियों ने चित्तौड़ वासियों को फलने-फूलने का सदैव अवसर दिया और आज भी दे रही हैं। चित्तौड़गढ गंभीरी और बेड़च के मध्य स्थित है। शहर में गंभीरी नदी पर पन्नाधाय सेतु एवं बेड़च नदी पर नवीन पुल का निर्माण किया गया है। ये दोनों नदियाँ प्रवाहित होकर बीसलपुर बांध तक जाती हैं, जो राजधानी जयपुर की प्यास बुझाता है । 

बेड़च नदीबनास नदी की एक सहायक नदी है  यह नदी गंगा नदी बेसिन से संबंधित है। इसकी लंबाई 157 किमी और बेसिन क्षेत्र 7,502 किमी है। उदयपुर की गोगुन्दा-पहाड़ियों से निकलने वाली बेड़च राजस्थान की प्राचीन नदी है। अब तक यह जीवनदायिनी नदी किसानों की फसलों को सींचने के साथ, भूजल में वृद्धि करने वाली रही है, जिसके कारण कुओं और नलकूपों के माध्यम से आमजन की प्यास बुझती आई है। चित्तौड़वासियों के लिए यह मातृ-स्वरूपा रही है। गंभीरी ने भी यही कर्तव्य निभाया। इन दोनों नदियों का मिलन चित्तौड़गढ जिले में ही होता है। 

चित्तौड़ के ऐतिहासिक प्रसिद्ध तीन शाकों-जौहर और सहस्र तर्पणों की साक्षी गम्भीरी नदी  चित्तौड़ के वास्ते सुरक्षा प्रहरी और सुरक्षा खाई थी। नगर के बीचों-बीच बहने वाली इस नदी के ऊपर लगभग 700 वर्ष पहले सन् 1310 ई. में अलाउद्दीन के बेटे खिजरखाँ ने एक विशाल पुल बनाया जो आज भी सुरक्षित आवागमन का शहरवासियों के लिए प्रमुख साधन है। किन्तु कई इतिहासवेत्ता मानते  हैं कि इस पुल के निर्माण की शुरुआत तो अलाउद्दीन के सन् 1303 ई. के आक्रमण से पहले ही राणा समयसिंह और तेजसिंह के समय हो गई थी।

समय के साथ चित्तौड़गढ शहर ने औद्योगिक विकास की राह पकड़ ली और वर्तमान में प्रमुख औद्योगिक शहर के रूप में विकसित होता हुआ प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है। प्रगति के दौर में आर्थिक महत्त्वाकांक्षाएँ हावी होना स्वाभाविक हैं, किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि हम अपना मौलिक कर्तव्य भूल रहे हैं। वह है- इन दोनों नदियों के स्वच्छ जल को बचाने का कर्तव्य। यह सच है कि शहर का विकास इन दो नदियों के केन्द्र में है, उसका अतीत साक्षी है और भावी विकास में भी इन दोनों नदियों की सदैव आवश्यकता रहेगी। फिर भी हमारा ध्यान इस ओर नहीं है कि ये नदियाँ किस सीमा तक प्रदूषित हो चुकी हैं और इस प्रदूषण को रोकने के हमारे द्वारा किये गये प्रयास क्या हैं? औद्योगिक विकास से रासायनिक कचरों का निष्पादन और उससे इन नदियों का बचा रहना आवश्यक है, किंतु पर्यावरणीय मानकों का निर्वाह कहीं भी दिखाई नहीं देता। औद्योगिक कचरे से जहाँ भूमि बंजर हो रही है, वहीं इन नदियों का पानी भी विषैला हो रहा है। यह कितना भयावह है, यह तो आने वाला समय बताएगा।

औद्योगिक कचरे के साथ शहरवासियों की नालियों का गंदा पानी कहाँ जा रहा है? इस विषय पर भी हमारा ध्यान नहीं गया है। यह गंदा पानी घूम-फिरकर इन्हीं नदियों में मिश्रित हो रहा है, जो अन्ततः हमारे ही शरीर में पुनः जहर घोल रहा है। जहरीले पानी से मछलियों का मरना आम बात है, तो सफेद होती चट्टानें, बंजर होती भूमि, जहरीली घास का पैदा होना, तटीय गाँवों में चर्मरोगों का बढ़ना कहीं इनके प्रदूषित होने का प्रमाण तो नहीं है। समय रहते यदि इस ओर हमारा ध्यान नहीं गया, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ नहीं करेंगी। 

बेड़च और गंभीरी का कलकल की ध्वनि से निरन्तर बहते रहना और निर्मल धाराओं की श्वेतकणिकाओं से हरीतिमा का अवलोकन करना चित्तौड़गढ की विरासत का बिम्ब रहा है। यह बिम्ब सदैव मुग्धकारी रहा है और भविष्य में भी रहना चाहिए, आवश्यकता  है तो मात्र सजग प्रहरी के रूप में हमारे दायित्व बोध की। औद्योगिक समूह पर्यावरणीय मानकों का निर्वाह करे, शासकीय अभिकरण सजग निगरानी रखे और जनता स्वयं चेतनावान बनकर अपने जीवन-रक्त को जहर से बचाये, तो वह दिन स्वर्णिम होगा जब पुनः यह शहर समूचे वैभव के साथ अरावली के अंश को हरितिमा से आच्छादित करता रहेगा और जीवन-रथ को प्रगति के पथ पर अग्रसर करेगा ।

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हिंदी भाषा और व्याकरण





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