ई-पत्रिकाओं ने पाठकीयता को बढ़ाया है

अपनी माटी की संगोष्ठी:रिपोर्ट 
समाधान सुझाता हुआ उपन्यास है खम्मा -डॉ राजेन्द्र कुमार सिंघवी 

चित्तौड़गढ़ 18 फरवरी,2013


हाशिये पर जीवन जीते आदिवासी, दलित, स्त्री, वृद्ध, आर्थिक रूप से गरीब जैसे वर्गों की पीड़ा को समय रहते अनुभव किये जाने और उसे एक समाधान के साथ उकेरने की महती ज़रूरत है। मुख्यधारा के अधिकाँश लोग जीवन के लिए बहुत ज़रूरी साधनों के अभाव वाली स्थितियों से वाकिफ नहीं है इसलिए वे अनुभूत कड़वे सच  के कम करीब है। एक रचनाकार का दायित्व है कि  वो सामाजिक यथार्थ को लिखने की अपनी प्रतिबद्धतता के साथ तथ्यपरक लेखन करे। घोर भैतिकतावादी युग में संक्रमण की शिकार लिखने-पढ़ने की संस्कृति पर टिक्का-टिप्पणी के बजाय रचनाकारों को इत्मीनान से सोचकर अपने लिखने के शिल्प पर खुद को केन्द्रित करना चाहिए।वैसे ही दैनिक जीवन से परेशान आमजन को साहित्य की हल्की फुल्की खुराक दिए जाने की ज़रूरत है जिसमें विचार का होना ज़रूर शामिल हों। नई सदी की पीढ़ी तक सार्थक साहित्य पहुँचाने में बीते सालों में ई-पत्रिकाओं ने महती भूमिका निभाई है।फिलहाल इनके सावधानीपूर्वक इस्तेमाल की सलाह है।

ये विचार अपनी माटी ई-मैगज़ीन द्वारा चित्तौड़ के सेंट्रल अकादमी सीनियर सेकंडरी स्कूल में 17 फरवरी को आयोजित संगोष्ठी में उभरे।वेबपत्रिका की स्थापना के तीन साल पूरे होने पर यहाँ उपन्यास परम्परा और हाशिये के लोग विषय पर केन्द्रित संगोष्ठी में विभिन्न वक्ताओं ने आर्थिक,सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से हाशिये का जीवन जीते लोगों पर चिन्तनपरक विचार रखे। इस अवसर पर जेसीस क्लब सचिव अश्रलेश दशोरा, स्वतंत्र लेखक नटवर त्रिपाठी, शोधार्थी प्रवीण कुमार जोशी, रंगकर्मी अखिलेश औदिच्य, कवयित्री कृष्णा सिन्हा ने माल्यार्पण द्वारा स्वागत और अभिनन्दन किया।चित्रकार सत्यनारायण जोशी और युवा चित्रकार दिलीप कुमार जोशी ने अतिथियों को कोलाज और फड़ कृतियाँ भेंट की।मुख्य वक्ता युवा उपन्यासकार अशोक जमनानी का शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया।

अशोक जमनानी के लिखे बहु प्रतीक्षित उपन्यास खम्मा का विमोचन भी इसी आयोजन की एक रस्म रही। गौरतलब है कि खम्मा राजस्थान के पश्चिमी इलाके वाले में बसे मांगनियार कलाकारों और राजपूतों के बीच के संबंधों पर केन्द्रित रचना है। समय के साथ इनके जीवन व्यवहार में बाज़ार की वज़ह से बहुत से बदलाव हो रहे हैं।एक तरफ गायकी के हुनरमंद कलाकार दोयम दर्जे का जीवन जीने पर मज़बूर हैं तो दूसरी तरफ दलाल संस्कृति ने इनका भरपूर शोषण किया है। जजमानी परम्पराएं भी अब ढ़ीली पड़ती नज़र आ रही है।कुलमिलाकर समय बड़ा जालिम हुआ जाता है।

आयोजन में आतिथ्य की भूमिका में कवि और कथाकार योगेश कानवा ने ई-पत्रिका को न्यू मीडिया का सबसे 
मजबूत साधन माना है।वे खुद कबूल करते हैं कि कहीं न कहीं पुस्तक संस्कृति के पूरक के रूप में ये वेबदुनिया अपना अस्तित्व कायम करने लगी है। बतौर अतिथि स्पिक मैके सलाहकार हरीश लड्ढा ने अपने वक्तव्य में कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमें समय निकालकर पढ़ने की रूचि का विकास करना चाहिए।पढ़ने की आदत आदमी में संवेदशीलता का स्तर बनाए रखती है जो सही मायने में मानव व्यवहार सिखाती है।

इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी के बीज वक्तव्य के रूप में अपनी बात कहते हुए डॉ रेणु ने कहा कि समाज की मुख्यधारा से अलग जी रहे लोगों को साथ लिए बगैर किसी भी क्रान्ति की कल्पना संभव नहीं है।उनके अन्दर दबा हुआ दर्द और आक्रोश ही  एक नए परिवर्तन की अलख जगाता है।युवा समीक्षक डॉ कनक जैन ने ख्यातनाम लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा जूठन के बहुत सारे संदर्भों के ज़रिये कहा कि  अगर दलित समुदाय स्वयं आत्मिक रूप से सशक्त अनुभव करे तो दुनिया की कोई  ताकत उन्हें समाज के हाशिये तक नहीं ला सकती है। वहीं संगोष्ठी में हिन्दी प्राध्यापक डॉ राजेश चौधरी ने कथाकार शिवमूर्ति  के लघु उपन्यास तर्पण को आधार बनाकर कहा कि निम्न वर्ग को सामाजिक रूप से मजबूत करने के लिए उसके साथ हुयी शोषण की हर घटना को सामुदायिक स्तर पर आमजन की आवाज़ बनाकर उठाना होगा।

युवा आलोचक डॉ राजेन्द्र कुमार सिंघवी ने विमोचित उपन्यास खम्मा के क्राफ्ट पर बात करते हुए उपन्यास के मुख्यांश श्रोताओं के सामने रखे।उन्होंने कहा कि खम्मा में लेखक ने राजस्थानी संस्कृति और हमारे लोक जीवन की बहुत सारी परम्पराओं के अनछुए पहलुओं पर हमारा ध्यान फिर से आकृष्ट किया है।अलगाव के बढ़ते हुए हालातों में एक समाधान सुझाते इस उपन्यास का स्वागत किया जाना चाहिए।

आखिर में समग्र वकतव्य देते हुए कवि और समालोचक डॉ सत्यनारायण व्यास ने कहा कि आज के सन्दर्भ में कोई आलोचक किसी रचनाकार को बना या बिगाड़ सकता है ये भ्रान्ति मात्र ही है। कई सारे लेखक आलोचकों की परवाह किये बगैर अपनी अनुभूतियाँ पाठकों को ध्यान में रखकर लगातार रूप से लिख रहे है और सफलता भी पा रहे हैं।सही मायने में यही साहित्य के सृजक हैं। आयोजन का संचालन अपनी माटी के संस्थापक माणिक ने किया और आभार विकास अग्रवाल ने व्यक्त किया।

इस अवसर पर अशोक जमनानी ने स्कूल के विद्यार्थियों को कहानी सुनाते हुए उनसे संवाद भी किया।आयोजन में शहर और आसपास के की सुधी पाठक शामिल हुए जिनमें मुन्ना लाल डाकोत, भंवर लाल सिसोदिया, पी डी गौड़, पी के अग्रवाल, डॉ अखिलेश चाष्टा, चन्द्रकान्ता व्यास, ओम स्वरुप छीपा, ओ एस सक्सेना, जीतेन्द्र कुमार सुथार, नितिन सुराना, अमृत वाणी, नंदकिशोर निर्झर, चंद्रशेखर चंगेरिया, भारत व्यास, परेश नागर आदि मौजूद थे।

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