राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005


शैक्षिक वार्ता
विषयः- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005
सम्पादन- डॉ.राजेन्द्र सिंघवी,प्रभागाध्यक्ष सी.एम.डी.ई.

विषय प्रवेश:-
1. यह विद्यालयी शिक्षा का अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है ।
2. इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के के शिक्षाविदों,वैज्ञानिकों,विषय विशेषज्ञों व अध्यापकों ने मिलकर तैयार किया है ।
3. मानव विकास संसाधन मंत्रालय की पहल पर प्रो0 यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए 23 विद्वानों ने           शिक्षा को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा ।

मार्गदर्शी सिद्धान्तः-
1. ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोडा जाय ।
2. पढाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाय ।
3. पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक केन्द्रित न रह जाय ।
4. कक्षाकक्ष को गतिविधियों से जोडा जाय ।
5. राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार हो ।

प्रमुख सुझावः-

1. शिक्षण सूत्रों जैसे-ज्ञात से अज्ञात की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर,आदि का अधिकतम प्रयोग हो ।
2. सूचना को ज्ञान मानने से बचा जाय ।
3. विशाल पाठ्यक्रम व मोटी किताबें शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक है ।
4. मूल्यों को उपदेश देकर नहीं वातावरण देकर स्थापित किया जाय।
5. अच्छे विद्यार्थी की धारणा में बदलाव आवश्यक है अर्थात् अच्छा
 विद्यार्थी वह है जो तर्क पूर्ण बहस के द्वारा अपने मौलिक विचार
 शिक्षक के सामने प्रस्तुत करता है ।
6. अभिभावकों को सख्त सन्देश दिया जाय कि बच्चों को छोटी उम्र
 में निपुण बनाने की आकांक्षा रखना गलत है ।
7. बच्चों को स्कूल से बाहरी जीवन में तनावमुक्त वातावरण प्रदान
 करना ।
8. “कक्षा में शान्ति” का नियम बार-बार ठीक नहीं अर्थात् जीवन्त कक्षागत वातावरण को प्रोत्साहित किया         जाना चाहिए ।
9. सहशैक्षिक गतिविधियों में बच्चों के अभिभावकों को भी जोडा जाय ।
10. समुदाय को मानवीय संसाधन के रूप में प्रयुक्त होने का अवसर दें ।
11. खेल आनन्द व सामूहिकता की भावना के लिए है, रिकार्ड बनाने व तोडने की भावना को प्रश्रय न दे ।
12. बच्चों की अभिव्यक्ति में मातृ भाषा महत्वपूर्ण स्थान रखती है । शिक्षक अधिगम परिस्थितियों में इसका उपयोग करें ।
13. पुस्तकालय में बच्चों को स्वयं पुस्तक चुनने का अवसर दे ।
14. वे पाठ्यपुस्तकें महत्वपूर्ण होती है जो अन्तःक्रिया का मौका दे ।
15. कल्पना व मौलिक लेखन के अधिकाधिक अवसर प्रदान करावें ।
16. सजा व पुरस्कार की भावना को सीमित रूप में प्रयोग करना चाहिए ।
17. बच्चों के अनुभव और स्वर को प्राथमिकता देते हुए बाल केन्द्रित शिक्षा प्रदान की जाय ।
18. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मनोरंजन के स्थान पर सौन्दर्यबोध को प्रश्रय दे ।
19. शिक्षक प्रशिक्षण व विद्यार्थियों के मूल्यांकन को सतत प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाय ।
20. शिक्षकों को अकादमिक संसाधन व नवाचार आदि समय पर पहुंचाये जाये ।



डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंघवी

(अकादमिक तौर पर डाईट, चित्तौडगढ़ में वरिष्ठ व्याख्याता हैं,आचार्य तुलसी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर ही शोध भी किया है.निम्बाहेडा के छोटे से गाँव बिनोता से निकल कर लगातार नवाचारी वृति के चलते यहाँ तक पहुंचे हैं.वर्तमान में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की चित्तौड़ शाखा के जिलाध्यक्ष है.शैक्षिक अनुसंधानों में विशेष रूचि रही है.'अपनी माटी' वेबपत्रिका के सम्पादक मंडल में बतौर सक्रीय सदस्य संपादन कर रहे हैं.)


मो.नं.  9828608270


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