''संविधान की प्रस्तावना को शब्दश सच करने का लंबा रास्ता और उद्देश्य एक बड़ी जिम्मेदारी की तरह हमारे सामने है। ''-डॉ रेणु व्यास

फ्रेंड्स ऑफ़ फोर्ट चित्तौड़ के आयोजन की रिपोर्ट


दुर्भाग्य यह है कि हमारी पीढ़ी  के पास देश के लिए कोई सपना नहीं है-डॉ रेणु व्यास

डॉ रेणु व्यास
हमें ये नहीं भूलना नहीं चाहिए कि आज हम जिस गणतांत्रिक भारत में रहते है वो हमारे ही पुरखों के लम्बे संघर्ष का सुखद परिणाम है। इस वैश्विक समय में अपने ही संविधान की प्रस्तावना को शब्दश सच करने का लंबा रास्ता और उद्देश्य एक बड़ी जिम्मेदारी की तरह हमारे सामने है। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ से शुरू जनजागरण से लेकर देश की आज़ादी तक का अपना पहला संघर्ष पूरा हुआ मगर बीते चौसंठ सालों में भी हम अपनी बहुत सी व्याधियों से लड़ते रहे हैं। जातिवाद, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार, सामाजिक-आर्थिक गैर बराबरी की दीवारे कमोबेश रूप में आज भी हमारे सामने अखंड खड़ी हैं। अफसोस इस नितांत व्यक्ति केन्द्रित समय में हमारी युवा पीढ़ी के पास स्वतन्त्रता सेनानियों की तरह कोई राष्ट्रीय सपना नहीं है। फिर भी हमें इस तंत्र में आमजन के हस्तक्षेप को ज्यादा मजबूत बनाने की तरफ सोचना होगा।

डॉ सत्यनारायण व्यास 
हमें गर्व होना चाहिए कि  हमने अपने ढ़ंग  से अपने राष्ट्र की परिभाषा दी है। जहां भारत में राष्ट्र का अर्थ कोई भौगोलिक सीमा से नहीं होकर समस्त मानव समाज  से है और समाज भी ऐसा जहां जाति ,नस्ल, धर्म जैसी संकीर्णता से हम परे हैं। हमारी ये परिभाषा उन यूरोपीय देशों से कई ज्यादा अच्छी है जो बहुत संकड़ी मानसिकता के कारण बाद में आगे नहीं बढ़ सके। गणतंत्र का अर्थ हमारे लिए दासता और उपनिवेशवाद से मुक्ति था  जिसके सही मायने हमें मालुम होने चाहिए। हमारे देश में संविधान की संप्रभुता हमारी जनता से है। चूँकि हम सभी में से अधिकाँश का जन्म आज़ाद भारत में हुआ है इसलिए हम संघर्ष का सही अंदाजा नहीं लगा पाए हैं। हम देश की आज़ादी के साथ मिली उपलब्धियों का असल मोल हम समझ ही नहीं पाए हैं।


ये विचार नगर की युवा विचारक डॉ रेणु व्यास ने फ्रेंड्स ऑफ़ फोर्ट चित्तौड़ जैसे अनौपचारिक समूह द्वारा चित्तौड़ दुर्ग पर स्थित विजय स्तम्भ परिसर में आयोजित एक संगोष्ठी में व्यक्त किये। 26 जनवरी के उत्सवी माहौल में सवेरे सवा ग्यारह बजे शुरुआत यहाँ में हिंदी कवि और समालोचक डॉ सत्यनारायण व्यास सहित पचास से भी अधिक नागरिकों द्वारा झंड़ारोहण किया गया। डॉ व्यास ने ऐसे कार्यक्रम दुर्ग जैसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर केन्द्रित कर उन्हें आमजन के नेतृत्व में पूरे किये जाने की महती ज़रूरत व्यक्त की। संयोजक पवन पटवारी के अनुसार जानेमाने गीतकार अब्दुल ज़ब्बार ने राष्ट्र स्तुति में गीत पढ़े। 

डॉ राजेन्द्र सिंघवी 

इस मौके पर कोलेज के हिन्दी प्राध्यापक डॉ राजेन्द्र कुमार सिंघवी ने कहा कि भारतीय संस्कृति सदैव लोकतांत्रिक रही है। विदेशी दासता के क्षणों में भी हमने अपने मूल सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक स्वरुप को सदैव बनाए रखा है उसी का परिणाम है कि  हम तब भी उच्च कोटि के वैचारिक साहित्य की रचना कर सके। समय के साथ इस लोकतंत्र को ज्यादा परिपक्व बनाए जाने की आवश्यकता है अन्यथा इसके भीड़तंत्र में तब्दील हो जाने की पूरी आशंका है। संगोष्ठी को भूमि विकास बैंक अध्यक्ष अनिल सिसोदिया और भास्कर ब्यूरो प्रमुख राकेश पटवारी ने संबोधित करते हुए कहा कि ये आयोजन ज्यादा सशक्त संस्थागत स्वरुप में आगे बढ़े और इसे दुर्ग से जुड़े दूसरे ज़रूरी पहलुओं पर भी  केन्द्रित कार्यक्रम करने चाहिए। 


गीतकार अब्दुल ज़ब्बार 
कुछ फ्रांसीसी पर्यटकों सहित फोटोग्राफर वेलफेयर सोसायटी के के के शर्मा,  गोपाल शर्मा, जायंट्स ग्रुप के  जगदीश चन्द्र चौखड़ा, चित्तौड़गढ़ अरबन को-ओपरेटिव बैंक के आई एम् सेठिया,  मनसुख पटवारी, वंदना वजिरानी, अमन फाउंडेशन के रामेश्वर लाल पंडया, अपनी माटी के डॉ राजेश चौधरी, कौटिल्य भट्ट, चन्द्रकान्ता व्यास, नंदिनी सोनी, दिनेश सांचोरा, दुर्ग विकास संस्थान के गौतम भड़कत्या  सहित  चित्तौड़ चेतक, जेसीस क्लब की सहभागिता से आयोजन हुआ। समापन कृष्णा सिन्हा के कविता पाठ और जगदीश चन्द्र चौखड़ा द्वारा आभार के साथ हुआ। संगोष्ठी के सूत्रधार संस्कृतिकर्मी माणिक थे। 

पवन पटवारी
आयोजन समन्वयक 
फ्रेंड्स ऑफ़ फोर्ट चित्तौड़ अनौपचारिक समूह

बाकी छायाचित्र 



संचालन करते माणिक 

शुरू में समूह फोटो 

आखिर में समूह का फोटो 



Search This Blog