साहित्य मंच : गांधी और हिन्दी
02 अक्टूबर,2019
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली और
हिंदी विभाग डॉ. भीमराव अंबेडकर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, निंबाहेड़ा (राजस्थान) के संयुक्त तत्त्वावधान में महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती के अवसर पर 'गांधी और हिंदी'
विषयक साहित्य-मंच का आयोजन दिनांक 2 अक्टूबर,2019
को अपराह्न 2:00 बजे महाविद्यालय
सभाकक्ष में किया गया।समारोह के अध्यक्ष डॉ.इंदु शेखर
तत्पुरुष,सदस्य, हिंदी परामर्श मंडल साहित्य
अकादेमी,नई दिल्ली, मुख्य अतिथि डॉ.उमेश कुमार सिंह,पूर्व निदेशक मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल,
विशिष्ट अतिथि डॉ. नरेंद्र मिश्र, सह आचार्य
,हिंदी विभाग,जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय,
जोधपुर तथा महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. कमल नाहर ने मां सरस्वती की
प्रतिमा एवं महात्मा गांधी के छवि चित्र
पर माल्यार्पण के साथ दीप प्रज्वलन कर शुभारंभ किया।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.कमल नाहर ने अतिथियों का
स्वागत करते हुए कहा कि साहित्य अकादमी ने हिंदी जगत के प्रतिष्ठित विद्वानों के
विचारों का अवगाहन करने का महाविद्यालय को परम अवसर दिया है ।साहित्य मंच के
माध्यम से 'गांधी और हिंदी' को
समझने का हमारे पास आज बेहतर अवसर है। साहित्य मंच के
आयोजन सचिव डॉ. राजेंद्र कुमार सिंघवी अपने आरंभिक वक्तव्य में विषय की
रूपरेखा को स्पष्ट करते हुए कहा कि गांधीजी का मूल्यांकन हिंदी भाषा
और साहित्य के आलोक में करना कार्यक्रम के आयोजन का अभीष्ट है। हिंदी भाषा और लिपि
के प्रति गांधीजी का दृष्टिकोण, यथार्थपरक विवेचना तथा
तत्कालीन परिस्थितियों में प्रासंगिकता का मूल्यांकन अपेक्षित है।इसी तरह हिंदी साहित्य
की विविध विधाओं पर गांधी जी के दर्शन का प्रभाव किस
सीमा तक पड़ा, उसकी विशद विवेचना साहित्य मंच के इस आयोजन का
उद्देश्य है ।उद्देश्य की प्रतिपूर्ति होगी,ऐसी आशा है ।
डॉ. उमेश कुमार सिंह ने 'हिंदी भाषा और गांधी दृष्टि' विषय पर अपने आलेख
पाठ में हिंदी भाषा के स्वरूप के प्रति गांधीजी के मंतव्य, राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति गांधी जी जी के विचार तथा स्वाधीनता आंदोलन
में हिंदी की महत्त्वपूर्ण भूमिका को
रेखांकित किया। उन्होंने अनेक उद्धरणों के साथ राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति
महात्मा गांधी के विचारों को प्रकट किया। डॉ.सिंह के अनुसार गांधी यद्यपि भाषा
वैज्ञानिक नहीं थे,परंतु भारत की आत्मा के लिए उन्होंने
हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में सर्वाधिक उपयुक्त माना। इसी कारण हिंदी ने देश
की एकता को सूत्र में बांधकर विदेशी शक्तियों से
लोहा लिया।
डॉ. नरेंद्र मिश्र ने 'हिंदी साहित्य पर गांधी के प्रभाव' की विवेचना
करते हुए बताया कि बीसवीं शताब्दी के आरंभ से आजादी और उसके बाद तक हिंदी काव्य
और गद्य साहित्य पर गांधीजी के विचार छाए रहे, जिसके
परिणामस्वरूप हिंदी काव्य की राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा समृद्ध हुई ।
हिन्दी के अनेक साहित्यकार गांधीजी से प्रभावित होकर देश की आज़ादी के लिए जनता को जागृत करने में लग गए ।
कथा साहित्य में प्रेमचंद और जैनेंद्र ने गांधी के विचारों को मूर्त रूप देते
हुए समाज सुधार की और विशिष्ट कार्य किया। उन्होंने हिंदी साहित्य में गांधी से
प्रभावित विभिन्न साहित्यिक कृतियों की कृतियों की चर्चा भी की।
अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. इंदु शेखर तत्पुरुष ने गांधी और हिंदी दोनों को एक-दूसरे का पर्याय बताया। उनकी दृष्टि में हिंदी के
गौरव को गांधी ने सदैव स्वीकार किया । दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार सभा की
स्थापना और उसके लिए सार्थक प्रयास करने की दृष्टि से उनके योगदान को भुलाया
नहीं जा सकता। गांधी की भाषा में आंतरिक विनय हमेशा रहा , जो कि वर्तमान समय में भाषायी विनम्रता का
संदेश प्रदान करता है।गांधी के विचार साहित्य में आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं ।
आलेख पाठ के पश्चात पश्चात के पश्चात उपस्थित
श्रोताओं ने संवाद परिचर्चा में भाग लिया और कई प्रश्नों के समाधान प्राप्त किए।
मंच की ओर से अनेक नई जानकारियां प्रदान की गई। आभार प्रो. भगवान साहू ने
ज्ञापित किया ज्ञापित किया ने ज्ञापित किया। साहित्य मंच के आयोजन में
चित्तौड़गढ़ जिले के अनेक साहित्य प्रेमी, शोधार्थी,
नगर के गणमान्य नागरिक एवं महाविद्यालय संकाय सदस्य उपस्थित रहे।
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-डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंघवी
आयोजन सचिव
मंचस्थ अतिथि |