आचार्य भिक्षु रचित 'सुबाहूकुमार रो बखाण ' माय भाव-सौंदर्य


आचार्य भिक्षु रचित सुबाहू कुमार रो बखाणमाय भाव-सौन्दर्य

(राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा जागती जोत पत्रिका, अंक-जून:2020 में प्रकाशित)
 
राजस्थानी भाषा रे विकास माय संतावां द्वारा रच्यौ साहित्य रो अनूठो योगदान रह्यौ है। इण साहित्य माय भक्ति-रस री धारां सूं सारा राजस्थान री माटी रो कण-कण आज तक भीग्यो नज़र आवै है। इण रौ मूल कारण यौ है कि संतां रो साहित्य उदात्त दृष्टिकोण पै आधारित हुवै है; आत्मा री आवाज सूं निकलै है; जीवन-मूल्यां ने परिष्कार करै है; सकारात्मक चिन्तन प्रदान करतो तको समाज ने गतिशील बणावै है; संस्कृति ने संरक्षण रे लारै हस्तान्तरण भी बखूबी करै है, राष्ट्र ने एक स्वरूप में ढालतां तकां जीवन अर जगत् की भावमूलक व्याख्या भी करै है।

इण दृष्टि सूं जैन धरम अर उणमै रच्चै साहित्य रो खास योगदान रह्यो है। यो साहित्य प्रामाणिक रूप में आज भी देख्यो जा सके है। इणरी खास विशेषता या है कि यो साहित्य गरिमा रे अनुकूल अर राजस्थानी भाषा री समृद्धि रो नींव रो पत्थर है। जैन संतांवां द्वारा रच्या साहित्य माय सत्यम्, शिवम् अर सुन्दरम् ने रूपायित करवा वाली विषय-वस्तु भाव-भूमि रे आधार माय है, जिणसूं जीवन-मूल्यों ने लोक जीवन में संचरण कियो जा सक्यो है अर गिरता तकां सांस्कृतिक मूल्यां ने आसरो। जिणरै परिणाम सूं राजस्थानी भाषा माय रच्या साहित्य रो निखार आयौ।

जैन धरम री श्वेताम्बर शाखा माय तेरापंथरो उदय हुयो। राजस्थानी भाषा माय हिन्दी संख्यावाची शब्द तेरहने तेराकह्यो जावै अर तूसर्वनाम री संबंध वाचक विभक्ति रो एकवचन भी तेराबणै है। संत भीखण1 ने दोनों शब्द रूपावां ने ध्यान में राखता तकां भगवान् महावीर रो ध्यान कर नै कह्यो-

हे प्रभो! यह तेरापंथ है। हम सब निर्भ्रान्त होकर इस पर चलने वाले हैं, अतः तेरापंथी हैं।2

मूलतः कवि री भावना ने तेरारी संख्या ने ही प्रेरित करी। इण वास्तै संत भीखणजी ने उणरौ दूसरो संख्या परक अरथ बतायौ कि पाँच महाव्रत3, पाँच समितियाँ4, अर तीन गुप्तियाँ5 इ तेरा नियम जो पालेगा वो तेरापंथीहोवेगा। इण आधार सूं तेरापंथ री मर्यांदा आज तक बणी तकी है। संत भीखणजी ने वि.सं. 1817 आषाढ़-पूर्णिमा रे दिन भाव-संयम ग्रहण कर्यौ। तेरापंथ री वास्तविक स्थापना उण दिन सूं ही मानी जावै। वैधानिक तौर सूं तेरापंथनाम भी स्वीकार कर लियो गयौ।6 वैचारिक दृष्टि सूं तेरापंथ एक आचार, एक विचार अर एक आचार्य री विचारधारा रो पोषक है। इण रौ दर्शन तर्क विज्ञान पे आधारित होवां सूं ज्यादा वैज्ञानिक है। आज तक इण परम्परा माय दस आचार्य हुया है।

तेरापंथ रा पहला आचार्य भीखण जी हुया जो बाद में आचार्य भिक्षु रे नाम सूं प्रसिद्ध विया। उणां रे युग माय धरम री विसंगतियाँ चरम पे थीं, असंयम री बढ़ती प्रवृत्तियाँ, धार्मिक आडम्बरां रो बढ़तो दायरो, धन रो फैलतो हाथ अर हिंसा ने धरम का रूप मानवां री बात ज्यादा फैल री थी। इण स्थिति ने देख आचार्य भीखणजी रो मन आन्दोलित हो उठ्यो अर तत्कालीन पाखण्ड पे वार करतां तकां धरम री नई कसौटियाँ री थापना की। अपणां विचारां रै प्रसार वास्तै उणां नै साहित्य रो आसरो लियो अर साहित्य री भाषा भी लोकभाषा यानी राजस्थानी ही राखी। आचार्य भिक्षु उण युग रा यशस्वी साहित्यकार हा।7

आचार्य भिक्षु ने गद्य और पद्य दोय विधावां माय प्रचुर साहित्य रच्यौ। अड़तीस हजार पद्य-प्रमाण इणरा साखी है। पद्य साहित्य चैपायां, दोहां, ढालां, बखाण, चरित, सिखावण, सिंध, चोढालियों, व्यावलो, थोड़ला, बाड़ आदि रूपां में है। राजस्थानी भाषा माय रची यो पद्य साहित्य भिक्षु-ग्रंथ रत्नाकरनाम सूं प्रकाशित हुयो है। इणरा दो खण्ड है। गद्य-साहित्य माय हुंडी, चर्चा, थोकड़ा, लिखत, विगत आदि रूपावां माय मौजूद हैं।

इण साहित्य माय स्वामी जी रचना रो मूल उद्देश्य अध्यात्म चर्चा करणो, सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि ने दृढ़ता सूं पेश करणो अर जन संपर्क ने सुदृढ़ राखणो हो।8 पण उणांरी पण्डिताई अर बुद्धि री शिखरता सूं यो साहित्य राजस्थानी भाषा रो अमूल धरोहर बणग्यो है। भाव अर कला सौन्दर्य री कसौटी पै यो काव्य खरो उतर्यौ है।9

आचार्य भिक्षु री एक रचना सुबाहू कुमार रो बखाणभिक्षु ग्रंथ रत्नाकर भाग-2 में प्रकाशित हुई है। यो आख्यान आचार्य श्री ने सुख विपाक सूत्ररे प्रथम अध्याय सूं लियो है। इण काव्य-रचना में कवि ने राजस्थानी भाषा रो प्रयोग कर नै, लोकगीतांवां आधारित ढालां में रच नै जन-जन में लोकप्रिय बणायौ। इण री मूल कथा इण प्रकार सूं है-

सुबाहू कुमार हस्तिशीर्ष नगर रे राजा अदीनशत्रु अर महाराणी धारणी रा यशस्वी बेटा हा। उणां रो विवाह पाँच सौ राजकुमारियों रे साथै हुयौ। एक समय री बात है जद भगवान् महावीर विहार करता तकां पुष्पकरण्डक उद्यान माय पधार्या। सुबाहू कुमार जी भी भगवान् रा दरशन करवा वास्ते गया। भगवान् री वाणी सूं प्रभावित होय ने वां श्रावक रा बारा व्रत धारण किया अर प्रभु री वन्दना आदि की। सुबाहू कुमार रे इष्ट, कांत, प्रिय अर मनोज्ञ रूप ने देख गौतम स्वामी घणा प्रभावित हुया अर आपणी जिज्ञासा से समाधान भगवान सूं पूछतां तकां बोल्या- भगवन्। सुबाहू कुमार ने अस्यो कईं दियो, कई खायो, कई कियो अर किण निग्रंन्थ समण रा वचन सुणी नै धारण किया, जिणरै कारणै उन्हें अस्यो वैभव मिल्यो।

उत्तर माय भगवान् महावीर स्वामी फरमायो- सुबाहू कुमार पूर्व जन्म माय हस्तिनापुर नगरी माय सुमुख नाम रो वैभवशाली गाथापथी हा। उणनै मास खमण तप करवा वारा सुदत्त अणगार ने अति शुद्ध मनोभाव सूं आहार वैरायो। आहार देतां तकां अपणै उत्कृष्ट भावां रै कारणै उणनै मिनख रो आयुष्य बांध्यो अर संसार में आणो-जाणो री अवधि घटाई। अपणै पूरव जनम रे इण सुपात्र दान रे कारणै सुबाहू कुमार ने यो सौभाग मिल्यो है।

इण व्याख्यान में या बात स्पष्ट हुई कि पूरव भव में दियो गयो सुपात्र दान सूं आगला भव माय भी धरम रो पालन आसान हो जावे है अर मानुष आपणौ कल्याण कर सके है। या रचना ग्यारह ढालां माय दो सौ तैतींस पदां में रची है। भाषा राजस्थानी है। एक ढाल रे बाद में दूहा आए हैं। ये सारी ढालां रागिनियों पे बणी हैं। इण रचना रो भाव सौन्दर्य री विवेचना इण प्रकार स्यूं है-

सुबाहू कुमार रो बखाण’- रचना री मूल भावना या है कि सुपात्र ने दान करवां सूं आगलो जनम भी सुधर जावे अर धरम रे पालन री राह आसान हो जावे है। मिनख साधु रूप में हों या श्रावक रूप माय, अपणे जीव रो कल्याण कर सके है। कवि ने बीज अर फल री उत्प्रेक्षा रे साथै कर्मां रा संबंध जोडतां तकां कह्यो-

जेहवों बीज बावें तेहवां फल लागै,

ज्यूं धर्म पायै भवों भव आगै ।10



इणरो मायने है कि मिनख जस्यो बीज बोवै उणरै मुजब ही आगे फल मिलै। इण वास्ते इण भव माय जिहयो धरम करे ला उणी रै मुताबिक आगलै जनम माय भी धरम रो अवसर मिलसी। सुबाहू कुमार पूरव जनम माय सुमुख गाथापति हा। हालांकि वी मिथ्यात्वी हा, पण उणानै साधु तणी घणो हरख रे साथै दान दियो, जिणरो फल यो मिल्यौ कि सांसारिक योनि रो आयुष्य घटि गयो अर मोक्ष पद प्राप्त कर्यो। इण संदर्भ माय कवि नै सुपात्र दान रो फल इण पंक्तियाँ माय बतायो-

बीज सारू फल लागसी, कर देखो मन में विचार ।

ज्यूं दांन सुपातर बीज मोखरो, आवागमण मिटावण हार।।

उत्तम बीज वायां थकां, उत्तम विरख हुवें ताय ।

पान फूलादिक सर्व पेंहिली हुवै, अनुक्रमें छेहलें फल थाय।।

ज्यूं दांन सुपातर ने दीयां, पुन बंधं करे करन सोख ।

पेंहला पुन बंधीया ते भोगवी, अनुक्रमें पछे जाअें मोख।।11

इण पद माय कवि रो संदेश है कि जिण प्रकार स्यूं बीज रै अनुसार फल मिलै, उणीज तरह सूं सुपात्र ने दान कर्यो जावै तो वो मोक्ष रूपी फल देवै। जिणसूं संसार रे माय आवा-जावा रो बंधन खतम होई जावै। इण प्रकार रे दान सूं पाप को क्षय होवे अर पुण्य रो बंध मिलै। पुण्य रै बंध स्यूं संसार में सुख मिलै अर फल री भांति बाद  मोक्ष मिलै।

कवि री ई रचना रा नायक सुबाहू कुमार रो व्यक्तित्व कितनो प्रभावशाली हो? इण रो वर्णन कवि ने खुद गौतम स्वामी रे मुख सूं कहलायो है। सुबाहू कुमार रे रूप सूं प्रभावित होय ने महावीर स्वामी से पूछ्यो -

ओं कुमर सुबाहू तांम, दीसें घणों अभिराम ।

सोमवदन छें अति रलियांमणों जी ।।

इष्ट ने इष्टकारी रूप, कांत ने कांतकारी अनूप ।

मनोज्ञ पियकारी मन गमतो घणों जी ।।

सोभागी छें सोमवंत, पियकारी दरसण अतंत ।

रूप गुणा करेंनें अति दीपतो जी ।।12



अर्थात् यो सुन्दर रूपवान, सौम्य मुखवारो, इष्टकारी, कांतरूप धारी, कामदेव रो रूप, मन ने मोहवा वारो, सौभागशाली और सुशील गुणां रो धारी किण कारण स्यूं है? इणरो रूप अर गुणां रो मेल कियां मिल्यों है? इण तरह काव्य रो नायक शास्त्रां में वर्णित मानदण्डानुसार मिलै है।

सुबाहू कुमार रो चरित इण काव्य माय उदात्त रूप स्यूं, सुश्रावक रा गुणां स्यूं वैभवशाली अर संकल्पी व्यक्तित्व रा गुणां स्यूं भरपूर है। उणानै वैराग्य रा पथ सूं डिगावां वास्तै माता-पिता अर बहुवां रो खूब प्रयास हुयौ। इणरी चर्चा करता तकां कवि कैवे है-

हिवें बोलें पांच सौ भांमणी, मुझ प्रीतम प्राण आधार ।

बालम मोरा हो ।।

तुझ बिन म्हां अबला नार हों, किम निकलेंला जमवार ।

बालम मोरा हो, बाल्हा बीछड़ीया बिल बिल करें ।।

सूर्य आथमीयां सूं कमल नां, फूल रा मुख मिल जाय ।

ज्यूं वदन तुम्हारो दीठां बिना, म्हांरो वदन आअें कुमलाय।।

म्हारे गेहणा आभूषण पहरणें, थां विण सर्व अलूणा होय ।

बले खावो पीवो म्हारे थां विणा, अंग न लागे कोय ।।13



इण पंक्तियाँ माय पाँच सौ राणियां रो विलाप प्रकट्यो है, जो तरह-तरह स्यूं उणानै दीक्षा लेवा सूं रोकवां रो प्रयास करै है, पण सुबाहू कुमार अपणा पथ स्यूं नी डिगै। मनख जमारो लेय ने भी यदि मुक्ति न ले सकां तो जीवण व्यर्थ मान्यो जावै। मिनख री मुक्ति माय संसार री माया-मोह अर राग आदि बाधक मान्या गया है। सुबाहू कुमार रै वैराग्य री लालसा ने रोकवा वास्तै उणा री माता रो प्रयास भी कम नी रह्यो । कवि ने उणरो वर्णन इणस्यूं कियो-

बोलती वागां पार, सब्द मोटें मोटें राकती रे ।

आंख्या रे आंसूंड़ां री धार, कुमर सुबाहू सांह्यो जोवती रे ।

जी हो कुमर सुबाहू गुणवंत, तिण रे साधपणों चित में वस्यो जी।।

तूं मुझ जीवन प्रांण, उंबर फूल तणी परे दोहिलो रे ।

वले रतन करंडीया समांण, मों ने पुतर दर्शण नहीं सोहिलो जी ।।

मणी माणक हीरा पन्ना सार, सोनों रूपों आपां रे अति घणो रे ।

वले भरीया कोठार भंडार, संचो घणो छें दरपीठ्या तणों रे ।।14



पण सुबाहू कुमार तो संसार ने छोड़वा वास्तै ही जनम्या। संसार री मोह-माया वानै मोहित नी कर सकै और विराग स्यूं पाछे हटवा रो विचार भी कोनी आवै। संसार री निस्सारता व मिथ्यात्व रो ध्यान करता तकां वे विचार करै कि इण संसार माय कुण माता अर कुण पूत। ये सगपण तो भव-भव में नया बणसी अर बिछुड़ जासी। मैंने तो जिन धरमने जाण लियो तो करमां रे बंधन में कियाँ बंधसी। उणारै विचारां ने कवि ने इण पंक्तियाँ में प्रकट्यो-

सुबाहू कुमर करें रे विचार, किण री माता नें किण रा दीकरा रे ।

ए सगपण अनंती वार, मिल - मिल ने बिछड़ गया जी ।।

म्हें तो जांण लियों जिण धर्म, म्हांने मीठी न लागें इणरी मोहणी रे।

आ तो यूं ही बांधे छे करम, घर मांहें राखण नें मों भणी रे ।।15



सुबाहू कुमार अतीव विनम्रवान हा। इतरा वैभव शाली होता तकां भी अहंकार नी हो। भगवान् महावीर स्वामी रा दर्शन करते बखत उणा री इण छवि री झलक देखी जा सकै। कवि ने उणसे वर्णन इण प्रकार सूं कियो-

दोनूं हाथ जोड़ी नीचो सीस नमाय,

लुल लुल बांदे जिण पाय ।

वीर बांदी रथ ऊपर बेठों आय,

ओ तो आयो जिण दिस जाय ।।16



सुबाहू कुमार महान् संयमी श्रावक बण्या। अपने जीव ने मुक्ति रो पथ पे लावा वास्तै वे भगवान् सूं बार-बार विनती करै और कैवे कि ओ संयम मोक्ष रो द्वार है। मैं संसार रो करम-बंधन ने जाण लियो है। अतः मेरा उद्धार करो भगवन्! कवि ने उनकी भावना यूं प्रकट की-

हाथ जोड़ी नें इम कहें, म्हें सरध्या तुम ना वेंण ।

थे तारक भवजीव ना, मोनें मिलीया साचा सेंण ।।

हूं बीहनों जांयण मरण थी, हूं लेसूं संजम भार ।

म्हें संसार जांण्यों कारिमो, एक मोक्ष तणा सुख सार ।।17



कवि जैनाचार्य हा। इण वास्तै इण रचना माय एक आछा जैन श्रावक रा, गुणां रो भी बखान हुयो है। ये गुण जैन-जीवन शैली रा अनुकूल है अर नैतिक मूल्यां ने प्रसार करवा वारा है। प्रतिक्रमण, दान, वैराग्यपूर्ण जीवन, आठम-चैदस रा नियम, समकित पूरण जीवन, अहिंसापूरण जीवन आदि जैन श्रावकां रा वांछनीय गुण है। सुबाहू कुमार के चरित्र-वर्णन रे साथै कवि ने इण रो वर्णन यूं कियो-

पोसा पडिकमण करें, सील व्रत नें नेम ।

सेंठी पालें आखंडी, देव गुर धर्म सूं पेम ।।

दांन दे चवदें प्रकार नों, साधां ने निरदोख ।

हाड मिंजा धर्म सूं रंगी, एक सूरत तिणरी मोख।।

देव गुर धर्म परख नें, सेंठी समकित धार ।

संका कंखा करें नहीं, रूचीया प्रवचन सार ।।

आठम चैदस पूरम दिनें, वले अमावस जाण ।

छ पोसा करें एक मास में, वैरागे मन आण ।।18



रस री दृष्टि सूं इण रचना रो अंगी रस शांत है, क्यूंकि नायक सुबाहू कुमार बैरागी बण जावै। शांत रस रे साथै इणरा मित्र रस करुण अर अद्भुत रस री छटा भी देखी जा सके है। साधु रूप में सुबाहू कुमार री विरागी स्थिति शांत रस री सृष्टि कर री है। उक्त पंक्तियाँ अवलोकन करवा वाळी है-

सीयल व्रत नव वाड पालें, दस विध जती धर्म धीर रे।

तप तपें मुनी बार भेदें, ते साध भला बड़ वीर रे ।।

$ $ $

चारित पाल्यों बहु वरसां, एक मास तणो संथार रे ।

काल करे सुर लोक पोहतों, पेहलें देवलोक मझार रे।।19



करुण रस री छटा रो अवलोकन सुबाहू कुमार रे वैराग्य स्यूं बणी स्थिति रे माय कियो जा सके जब माता-पिता, बंधु-बांधव, बहुवां आदि विलाप करै अर दुःखी होती तकी अपणै-अपणै तरीकां सूं वाने संन्यस्त रोवां ती रोके। पण जब वो नी पिघलै तो उणरौ नजारो इण पंक्तियाँ माय कवि ने यूं पेश कियो-

ए वचन सुणे बेटा तणों, माता हुइ निरास ।

घर बिखरतो जांण ने, -हांखे उंडा निसास।।

बहूआं करें विचरणां, छोड़ चले छे कंत ।

पांच सों मिलनें कहें, हिवे करवो कुण विर तंत।।20



इण प्रकार स्यूं अद्भुत रस री छटा उण समय देखी जावै जब सुबाहू कुमार वंदणा करवा वास्तै भगवान् रे पास जावै। गौतम स्वामी उणां रो रूप, गुण अर वैभव देख नै चकित रह जावै अर भगवान् सूं पूछवा लागै-

इण रो सुन्दर रूप आकार, लागै सगलां ने हितकार ।

बलभ लागें छे पुनवंत प्राणीयो जी ।।

अें सब्दादिक श्रीकार, इण पाभी रिध उदार ।

कुण - कुण करणी कीधीं भव पाछिलें जी ।।

ओं बसतो थो किण ठांय, इणरो कांइ गोत में नाम,

कांइ ने आचार हंुतो भव पाछिलें जी ।।21



इण विवेचना रे लारै यो प्रकट हुवै कि आचार्य भिक्षु द्वारा रच्यौ सुबाहू कुमार रो बखाणभाव-सौन्दर्य री दृष्टि सूं उत्तम कृति कही जा सकै है। आकार माय तो या रचना घणी छोटी पण मोटा संदेश री वाहक है। अपणा उद्देश्य नै प्राप्त करवां माय या रचना काफी हद तक सफल मानी जा सके है। रचना में पौराणिक आख्यान रे साथै कवि रो वैचारिक चिन्तन भी प्रकट्यो है। पूरी काव्य रचना माय भारतीय आध्यात्मिक जगत् रे वातावरण री सृष्टि, अनुभूति री तीव्रता, वर्णन माय कवि री प्रतिभा अर निपुणता, चिन्तन की मौलिकता, प्रभाव री जन व्यापकता अर रस री रसमयता देखी जा सकै है। या रचना राजस्थानी भासा रे गौरव री निशाणी मानी जा सकै है।

संदर्भ-

1. प्रथम तेरापंथी आचार्य भिक्षु।

2. मुनि बुद्धमल - तेरापंथ का इतिहास, खण्ड-1, पृ.75

3. अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।

4. ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेप और उत्सर्ग।

5. मनगुप्ति, वचन गुप्ति और काय गुप्ति।

6. मुनि बुद्धमल-तेरापंथ का इतिहास, खण्ड-1, पृ.78

7. मुनि बुद्धमल- तेरापंथ का इतिहास- खण्ड-1 पृ.185

8. डॉ.सिंघवी, राजेन्द्र कुमार- आचार्य तुलसी की काव्य साधना, पृ.24

9. वही, पृ.24

10. आचार्य भिक्षु, सुबाहू कुमार रो बखाण, भिक्षु ग्रन्थ रत्नाकर-2 पृ.151

11. वही, पृ.155

12. वही, पृ.152

13. वही, पृ.161

14. वही, पृ.160

15. वही, पृ.152

16. वही, पृ.151

17. वही, पृ.159

18. वही, पृ.157

19. वही, पृ.163

20. वही, पृ.161

21. वही, पृ.152
- - ---------

No comments:

Search This Blog