सांस्कृतिक अंतर्धारा की कृति : रस निरंजन

पुस्तक समीक्षा
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(अमर उजाला, 11जुलाई, 2021 में प्रकाशित)

सांस्कृतिक अंतर्धारा की कृति : रस निरंजन
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कलाएँ निरंजन हैं, जो अनादि-अनंत रूप में निर्विकार भाव से रस की सृष्टि करती है। ध्वनि, संगीत, लय, रंग, रूप आदि के समाहार के साथ कला में सामंजस्य भाव निहित होता है। संगीत, नृत्य, नाट्य आदि कलाओं ने सौंदर्य की सर्जना के साथ मानव-मन की अनुभूतियों को सदैव जीवंत किया है। इसी कारण सांस्कृतिक प्रतिमान की निर्मिति में कला का योगदान अतुल्य है। बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित डॉ. राजेश कुमार व्यास की कलाओं पर एकाग्र कृति 'रस निरंजन' कलाओं के आंतरिक सौंदर्य को अभिव्यक्त करती हुई सांस्कृतिक अंतर्धारा में उसकी उपस्थिति की बड़ी गहराई से चर्चा करती है।

रस निरंजन निबंध-संग्रह के चार खंड यथा- राग-रंजन में संगीत, नर्तन में नृत्य, चाक्षुष यज्ञ में नाट्य एवं षडंग में चित्रकला के विविध पक्षों पर आधारित कुल इकतीस निबंध संकलित हैं। राग-रंजन में लेखक ने संगीत और कला के अंतर्नाद को समृद्ध विरासत से जोड़ते हुए माना है कि भारतीय संगीत उदात्त है, जो शास्त्रीय और लोक संगीत के मेल से बना है। इसमें आध्यात्मिक शक्ति व  लोक रागों की मिठास के साथ शास्त्रीय रागों में भी लोक की उपस्थिति सुरों के माधुर्य के साथ मौजूद है।

'नर्तन' में नृत्य की विशिष्टता उजागर हुई है। लेखक ने लयबद्ध प्रतिक्रिया को नृत्य माना है, जिसमें नाट्य और नृत का संयोग है। यह विश्लेषण सम्मोहक है कि नटराज की नृत्यशाला यह संपूर्ण ब्रह्मांड है। सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह में नटराज के नृत्य की उपस्थिति है। नृत्य के अनंत व्योम को रूपायित करते हुए वे कहते हैं कि भारतीय दृष्टि जीवन को उसकी समग्रता में देखती है। भरतनाट्यम, कथक आदि इसके उदाहरण हैं।

रंगकर्म को लेखक ने चाक्षुष यज्ञ की संज्ञा दी है। आशय यह है कि नाट्य की सार्थकता मंचन से अधिक दर्शकों के आनंद की होती है। लेखक ने आलोचना को विमर्श की श्रेणी में रखने की बात कही है। 'आंखों का अनुष्ठान' लेख में इस पक्ष की गंभीर विवेचना की गई है। वे मानते हैं कि लोक नाटक जहां अनुरंजनकारी होते हैं, वहीं ये सांस्कृतिक दस्तावेज भी हैं। अतः इनकी आंतरिक गुणवत्ता का सम्मान होना चाहिए। इसी तरह षडंग के अंतर्गत अनीश कपूर, एलिस बोनर, जगदीप स्वामीनाथन, हिम्मत शाह, युसूफ, अखिलेश, कंटेगरी कृष्ण हेब्बार, अकबर पदमसी, विनय शर्मा की कलात्मक विशेषताओं को रेखांकित किया है। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि जिस समग्रता के साथ कला के विविध रूपों की उपस्थिति इनकी चित्रकारी में  है, वह संपूर्ण कला के नाद को समझने में मदद करती है।

डॉ. राजेश कुमार व्यास ने अपनी आंतरिक अनुभूतियों को उकेरते हुए जिस सरल शब्दावली में विवेचना के साथ कला की सैद्धांतिकी पर चर्चा की है, वह अतुल्य है। बोधि प्रकाशन, जयपुर द्वारा पुस्तक का आमंत्रण मूल्य मात्र ₹10 रखा है, जो साहित्यिक गरिमा से लगाव को उद्घाटित करता है। अल्पावधि में पाँचवाँ संस्करण प्रकाशित होना पुस्तक की पाठकीयता का प्रमाण है।पुस्तक का आवरण रस के आंतरिक स्वरूप को निरंजन दृष्टि से देखने की  ध्वनि व्यंजित करता है। 


पुस्तक : रस निरंजन ( निबंध-संग्रह)
लेखक : डॉ. राजेश कुमार व्यास 
प्रकाशक :बोधि प्रकाशन, जयपुर 
आमंत्रण मूल्य : 10/-
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