माटी के मीत

साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 
अपनी माटी
का चित्तौड़गढ़ में आयोजन 
माटी के मीत
कविता विमर्श,  काव्य पाठ, काव्य समीक्षा और पाठकों से संवाद )

इक्कीस अप्रेल,2013, दोपहर चार से शाम छ: बजे तक 
सेन्ट्रल एकेडमी सीनियर सेकंडरी स्कूल, सैंथी, चित्तौड़गढ़

नमस्कार,साथियो
साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 'अपनी माटी' आगामी 21 अप्रेल 2013, रविवार शाम चार से छ: बजे तक चित्तौड़गढ़ में एक  'कविता केन्द्रित संगोष्ठी' का आयोजन करेगी। माटी के मीत शीर्षक से आयोज्य कार्यक्रमों की कड़ी में ये पहला आयोजन होगा। मुख्य रूपेण कविता विमर्श के इस आयोजन में चित्तौड़ स्थित महाराणा प्रताप राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष और समीक्षक डॉ राजेश चौधरी सूत्रधार की भूमिका में रहेंगे।

डॉ चौधरी के अनुसार चित्तौड़गढ़ स्थित सेन्ट्रल एकेडमी सीनियर सेकंडरी स्कूल में आयोज्य इस विमर्श प्रधान गोष्ठी में राजस्थान के दो प्रतिनिधि कवि अजमेर के अनंत भटनागर और सवाई माधोपुर के विनोद पदरज अपनी कवितायेँ पढ़ेंगे।अनंत भटनागर समकालीन हिन्दी कविता में राजस्थान से एक प्रतिबद्ध कवि का हस्तक्षेप है। 


वे सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर भी अपनी सार्थक पहचान रखते हैं। रचना को परिवर्तन का औज़ार मानने वाले अनंत भटनागर में एक कमिटमेंट की झलक साफ़ तौर पर दिखती है।वहीं बेंकिंग सेक्टर में प्रबंधक की भूमिका निभाने वाले विनोद पदरज भी अपनी सादगी के साथ चकाचौंध की इस दुनिया से बहुत दूर गंभीर कविता लेखन में व्यस्त हैं। पदरज की कविता बहुत से मायनों में जीवन और प्रकृति के बहुत करीब की अनुभव होती है। ज्यादा तामझाम फैलाने और टंटेबाजी जैसी उक्तियों में दोनों का ही दिल नहीं रमता है।उक्त दोनों कवि आकाशवाणी और दूरदर्शन से सालों से प्रसारित हैं।

इस मौके पर अस्सी के बाद के कविता परिदृश्य पर समीक्षक डॉ कनक जैन अपनी बात रखेंगे। इन दोनों कवियों के प्रकाशित कविता संग्रहों पर युवा विचारक डॉ रेणु व्यास और युवा आलोचक डॉ राजेन्द्र कुमार सिंघवी समीक्षात्मक आलेख भी पढ़ेंगे। आखिर में हिन्दी समालोचक और कवि डॉ सत्यनारायण व्यास गोष्ठी में प्रस्तुत कविताओं के शिल्प और कथ्य पर समग्र वक्तव्य देंगे। कविता पाठ के बाद संगोष्ठी में उपस्थित श्रोताओं और आमंत्रित कविद्वय के बीच आज की कविता और कविता के इस समय पर आपसी संवाद भी होना है।कार्यक्रम संयोजक अपनी माटी संस्थापक माणिक रहेंगे। आप इष्टमित्रों सहित सादर आमंत्रित हैं।

आदर सहित, 
'अपनी माटी'  सम्पादन मंडल

महाशिवरात्रि :भगवान महेश्वर:सर्वज्ञ, परिपूर्ण और निःस्पृह हैं ।


यह संकेत कर रही सत्ता किसकी सरल विकास मयी ।
जीवन की लालसा आज क्यों इतनी प्रखर विलासमयी ।।

फोटो साभार 
कामायनी के आशा सर्ग में सृष्टि के विकास का जो चित्र उपस्थित हुआ है, उसमें परम शिव के विश्व रूप में अभिव्यक्त होने का संकेत है, जो परम कल्याणकारी है । ‘शिव’ शब्द में शकार का अर्थ है- नित्यसुख एवं आनंद, इकार का अर्थ है- पुरूष और व कार का अर्थ है - अमृत स्वरूपा शक्ति । इस प्रकार शिव का समन्वित अर्थ होता है- कल्याण प्रदाता या कल्याण स्वरूप ।

शिव के स्वरूप को उद्घाटित करते हुए शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान महेश्वर की प्रकृति आदि महाचक्र के कर्ता हैं, क्योंकि वे प्रकृति से परे हैं । वे सर्वज्ञ, परिपूर्ण और निःस्पृह हैं । सर्वज्ञता, तृप्ति, अनादिबोध, स्वतंत्रता, नित्य अलुप्त शक्तियों से संयुक्त होना और  अपने भीतर अनंत शक्तियों को धारण करना, इन ऐश्वर्यों के धारक महेश्वर को वेदों में भी भव्य रूप में निरूपित किया गया है । 

वेदान्तों में शैव तत्त्व ज्ञान के बीज का दर्शन होता है । इस तत्त्व ज्ञान के अनुसार सृष्टि आनंद से परिपूर्ण है । आनंद से ही सृष्टि का आरंभ, उसी से स्थिति और उसी से समाहार भी है । शिव के ताण्डव नृत्य में उसी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय की भी अभिव्यक्ति हुई है । उपनिषद में कहा गया है- आनन्दो ब्रह्मति व्यजानात् । आनन्दा द्वयेव खल्वि मा नि  भूतानि जायन्ते । आनन्देन जातानि जीवन्ति । आनंद प्रयान्त्य मिस विशन्तीति । मानव जैसे-जैसे इस शिव तत्त्व की प्राप्ति करता है, उसका दुःख दूर होता जाता है और उसे स्थायी मंगल तथा आनन्द के दर्शन होने लगते हैं । 

शिव महापुराण में शिव के कल्याणकारी स्वरूप का प्रकट करने वाली अनेक अन्तर्कथाओं का वर्णन है । यथा- मूढ़ नाम मायावी राक्षस को भस्म कर बाल विधवा ब्राह्मण पत्नी के शील की रक्षा करना, राक्षस भीम के अत्याचारों से जनता को मुक्ति देना, श्री राम को लंका-विजय का आशीर्वाद देना तथा शंख चूड़, गजासुर, दुन्दुभि निहदि जैसे दुष्टों का दमन कर जगत का कल्याण करना आदि । सृष्टि के कल्याण में शिव की क्रियाशीलता को जानकर महापुराणकार ने गुणानुवाद करते हुए लिखा-

आद्यन्त मंगलम जात समान भाव-
मार्यं तमीशम जरा मरमात्य देवम् ।
पंचाननं प्रबल पंच विनोदशीलं
संभावये मनसि शंकर माम्बिकेशं ।।

अर्थात् जो आदि से अंत तक नित्य मंगलमय है, जिनकी समानता कहीं भी नहीं है, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले परमात्मा है, जिनके पाँच मुख हैं और जो खेल ही खेल में अनायास जगत की रचना, पालन, संहार, अनुग्रह एवं तिरोभाव रूप पाँच प्रबल कर्म करते रहते हैं, उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर ईश्वर अम्बिका पति भगवान शंकर का मैं मन हीं मन चिन्तन करता हूँ ।

आज का मनुष्य चिर आनंद के वनिस्पत तात्कालिक आनंद की ओर अग्रसर है, जो कि शुद्ध बुद्धि निर्मित है, जिन्हें सामान्य अर्थ में वस्तुवादी, पदार्थवादी या बुद्धिवादी कहा जाता है । उनका सारा आधार विकृत बुद्धिवाद को लेकर है, जिसने चेतना व संवेदना के टुकड़े-टुकड़े कर दिए हैं, इसीलिए जगत् के दुःख की समस्या हल नहीं हो पाती । प्रत्येक वर्ग भ्रमित होता है, जिससे मानवता नष्ट होती है । इसका समाधान शिव-तत्त्व में है । शिवम् संदेश देता है कि मानव अपनी सब भूलें ठीक कर ले । यह जो महाविषमता का विष फैला है, वह अपनी कर्म की उन्नति से सम हो जाये, सब युक्ति बने, सबके भ्रम कट जाये, शुभ मंगल ही उनका रहस्य हो । इस स्थिति का रेखांकन इन पंक्तियों में किया है-

समरस से जड़ या चेतन, सुन्दर साकार बना था ।
चेतना एक विलसती, आनन्द अखण्ड घना था ।।

भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक जगत् के द्योतक त्रिगुणों को पुराणों में त्रिपुर का रूप दिया गया है, जिससे सृष्टि पीड़ित है । शिव इसी त्रिपुर का वध करके सृष्टि की रक्षा करते हैं । स्पष्ट है त्रिगुण, त्रिपुर या त्रैत की यह भेद बुद्धि ही संसार के दुःख का कारण है और इन तीनों का सामंजस्य या तीनों का समत्व ही आनंद का साधन है ।

समग्रतः भगवान शिव मात्र पौराणिक देवता ही नहीं, अपितु वे पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर हैं एवं निगमागम आदि सभी शास्त्रों में महिमामण्डित महादेव हैं । वेदों ने इस परम तत्त्व को अव्यक्त, अजन्मा, सबका कारण, विश्व-प्रपंच का स्रष्टा, पालक एवं संहारक कहकर उनका गुणगान किया है । श्रुतियों ने सदाशिव को स्वयम्भू, शांत, प्रपंचातीत, परात्पर, परम तत्त्व कहकर स्तुति की है । समुद्र मंथन से निकल कालकूट का पान कर जगत् का कल्याण करने वाले शिव स्वयं कल्याण स्वरूप हैं । इस कल्याणकारी रूप की उपासना उच्च कोटि के सिद्धों, आत्मकल्याणकारी साधकों एवं सर्व साधारण आस्तिक जनों, सभी के लिए परम मंगलमय, परम कल्याणकारी, सर्व सिद्धिदायक और सर्व श्रेयस्कर है ।

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