कालूयशोविलास रो काव्य-वैभव
(राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा प्रकाशित एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा अनुशंसित पत्रिका 'जागती जोत' में)
जैन धरम री तेरापंथ शाखा रा नवम् आचार्य तुलसी
अपणे युग रा मानतां साहित्यकार हुया। वे कवि हृदया स्यूं भरया, कुशल ग्रंथकार, लूंठा विचारक अर कई भासां रा जाणकार हा। मरुभूमि रो लाडनूं
नगर भाग्यशाली है, जठै इण महान्
आत्मा ने जनम् लियो। आचार्य तुलसी रा संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी अर
राजस्थानी में लिख्योड़ा नामी ग्रंथ जाण्या जावै, पण कवि के रूप में उणांरी मानतां राजस्थानी स्यूं जाणी जावै।
राजस्थानी मॉय रच्या उणांरा चरित काव्य अर मुक्तक काव्य लोगां रा कंठ पै आज भी
बिराजै। काव्य रा भाव सागै शिल्प दोन्या रो जोड़ कविता ने अमर बणावै।
आचार्य तुलसी रो चरित काव्य ‘कालूयशोविलास’ राजस्थानी भासा रो मौड़ है। इण में तुलसी रा गुरु आचार्य
कालूगणी रो जीवन चरित है। यो काव्य-ग्रंथ छह उल्लासां में बंट्यो तकों, जिण रै हर एक उल्लास मॉय छह कलावां है। हर कला
मॉय १६-१६ गीत है। डॉ. देव कोठारी लिख्यो है- “ इण में प्रबन्ध काव्य, महाकाव्य अर चरित
काव्य, तीनां रा गुण एक सागै
दिखै है।”1 इण रचना रा चरित
नायक तेरापंथ का आठवां आचार्य कालूगणी आदर्श गुणां स्यूं भरया तका धीरोदात्त नायक
है। वे भारतीय संस्कारां रा प्रतिमान है अर परोपकार री प्रतिमूर्ति रे रूप मॉय
ख्यात रह्या। कालूयशोविलास मॉय चरित वर्णन रै सागै कवि नै अनुभूति,
विचार, वर्णर अर रस रो विधान बड़ी बखूबी कियो। इणरो शिल्प भी काव्य लक्षणां स्यूं भरयो
तको है।
आचार्य तुलसी लोक-हृदय रा जाणकार हा। वे जन
भावना, उणरी मनोवृत्ति ने समझ
बड़ा भाव सूं रचना करै। वे राजस्थान रा रेवासी रह्या, अपणी मरुभूमि ने बड़े चाव स्यूं हृदय में संजोया। शीतकाल मॉय
सरदी रो भयानक रातां ने भी कवि ने बड़ो सुन्दर रूप खींच दियो, जो अनुभूति री सघनता रो परिचै है-
झीणी झीणी निसि ओस
पड़ै,
झांझरकै जम
ज्यावै जंगल।
जंगल रा हाथ
उजलातां,
जाड़ै स्यूं बर्फ
हुवै जम जल।
धोरां-धोरां धोला-सा,
चांदी रा जाणै
बरग बिछै।
जम ज्याय जलाशय
भी सतीर,
कित्ती सुन्दर
तस्बीर खिंचै।।2
इणी भांति मरुथल रो रात रो टैम, रेतीलां धोरां पै चंदौ अपणी चांदणी बिखेर
रह्यो। वो मोहक दृश्य याद करता तका कवि भावुक होय ने केवण लाग्यो कि यदि अठै आतप
अर रेतीली आंधियाँ नी हौवे, तो म्हारी या धरा
मनहरणी हो ज्यावै। अपणी मरु माटी सूं प्यार री वातां इण चरित काव्य में करता तकां
कवि तुलसी भाव-विभोर होय ने कहै-
रयणी रेणुकणां
शशि किरणां,
चलकै जाणक चांदी
रै।
मनहरणी धरती,
यदि न हुवै,
अति आतप अरु आंधी
रै।।3
कालूयशोविलास मॉय समकाल रे समाज रो चित्र है।
धरम रे विकास मॉय आडम्बर बाधक बणै है। कवि संत परम्परा सूं आवै, इणी कारण स्यूं ढोंग ने पैचाणै भी है। उण ढोंग
ने साहित्य रै माध्यम स्यूं वे उजागर करी नै समाज ने सावचेत भी करै। यो साहित्य और
संत रो दायित्व भी है। अपणै समाज में धरम के नाम सूं भोला-भाला लोगों ने आकर्षित
करवां वास्ते नया-नया ढोंग करता, साधुवां रो चित्र
इण शब्दां मांय देख्यो जा सकै-
कई भस्म विलेपित
गात्रा,
शिर जटा जूट बे
मात्रा जी।
मृगछाल-विशाल
बिछावै,
मुख सींग-डींग
संभलावै जी।
बाबा बाघम्बर औढ़े,
गंगा-जमना तट
पौढ़े जी।
कई न्या-धो रहै
सुचंगा,
कई नंगा अजब
अड़ंगा जी।।4
चरित काव्य मॉय परिवेश रो वर्णन सजीव होण्यो
छावै। अपणै समय री खास घटना रो वर्णन काव्य ने जीवन्त बणा देवै। प्रकृति अर मानव
रो साथ में सुख है तो दुःख भी भरयो तको है। कदी वारिश, कदी अकाल, कदी रोग तो कदी
खुशहाल सब तरह रो टैम देखवा में आवै। कवि ने अपणै समय में प्रकृति रो भयानक रूप भी
देख्यो, जिणमें मानव-जाति रे साथे
कई घट्यो, उणरो दृश्य है-
वर्षा विपुल
चिहोत्तरै, पिचत्तरै की
प्लेग।
फैली ग्रामो
ग्राम में, जनसंकट अतिरेग।।
मौत-घाट उतर्या
घणां, आकुल-व्याकुल
लोक।
शहर-ग्राम खाली
हुया, भगदड़ मची विलोक।।5
कालूयशोविलास मॉय कवि ने अपणै गुरु रो चरित्र
प्रगट्यो है, जिणांरा आसीस तलै
कवि तुलसी ज्ञान पायो। कवि अपणै गुरु रै प्रति श्रद्धा सूं नतमस्तक है, वे आपणां गुरु ने पुरूसोत्तम मानै अर उणांरी
महिमा रो वर्णन करै, जो ठीक भी है।
चरित काव्य रा नायक कालूगणी रै प्रति अपणां भाव प्रकट करता तकां कवि लिखै है-
अशरण-शरण,
अबन्धव-बन्धव, निरधन-धन जनमाथ।
गणनायक, असहाय सहायक, त्रायक-तीरथ तात।।
निजानंद निर्णायक
निरूपम, उपमा यदि उपमाय।
पुरुषोत्तम बिन
तुलना तिणरी, किण स्यूं किधी
जाय।।6
कवि जैन संत हा। इण वास्ते कविता मॉय दरशन री
दीठ है अर मोक्ष पद री चाह है। कालूयशोविलास ग्रंथ रो अंगी रस भी ‘शांत’ है। पण कविता में सब रसां रो अपणो-अपणो महता होवे, इण री उपस्थिति सूं काव्य अमर हो जावे। वे रस री महत्ता नै
इण शब्दां मॉय प्रकट करयो-
शांत करुण रस,
तरुण हास्य रस, वीराद्भुत अनवद्य।
प्रादुर्भूत
अभूतपूर्व रस, श्रोता हृदये सद्य।।7
मोक्ष पद पावण री लालसा लै’र जैन धरम रा श्रावक
दीक्षा लैवे। दीक्षा संयम रो पथ है, संसार सूं वैराग है, पण इण अवसर ने
सौभाग मानता तकां वे ‘जिन धर्म’
री उपासना करै। कवि री मानतां है कि क्षमा रूप मॉय
तलवार, धरम री ढाल, शास्त्र रूप रो शस्त्र अर जिन वचन रो कवच होवै
तो मिनख लोक अर परलोक दोन्यां पर विजय पा लैवे। शांत रस री वाणी इण शब्दां में है-
क्षमा-खड़ग कर धर
सुभग,
धर्म-ढाल दृढ़
ढाल।
शास्त्र-शस्त्र,
जिनवच-कवच,
प्रत्याक्रमण
कराल।।8
कालूयशोविलास मॉय शब्दालंकार अर अर्थालंकारां
रो सहज प्रयोग हुयो। रचना नै अलंकार रै भार स्यूं बोझिल नी बणवा दी। वे रस ने
बढावा रै सागै काव्य री शोभा भी बढ़ा रह्या है। अनुप्रास री छटा बिखेरती इण
पंक्तियाँ ने देखीजै-
कालू शासन-कल्पतरु,
कालू कला निधान।
कालू कोमल कारुणिक,
कालू गण की शान।।9
‘सन्देह’ अलंकार री सहज छटा इण पंक्तयां मॉय देखी जावै-
सुधा झरै मुख
निझरै,
भवि चकोर अनिमष।
वासर में हिमकर रमै,
या कालू-गुरु
एष।।10
बिम्ब अर प्रतीक विधान री दृष्टि सूं कालूयशोविलास
बेजोड़ ग्रंथ है। जठै भी अवसर मिल्यो, कवि ने पूरो मन सूं डूब नै वर्णन कर्यो। कवि री कल्पना सूं प्रतीक भी जीवन्त
हो उठ्या। तेरापंथ रे मर्यादा महोत्सव रो वर्णन मॉय मानवीकरण अलंकार रै सागै जो
प्रतीक आया, उणारी मौलिकता
अपणे आप मॉय अलग है-
गंगा जमना अर
सुरसती,
उछल-उछल कर गलै
मिलै।
विरह पताप,
संताप भूलाकर,
रूँ-रूँ
हर्षांकुर खिलै।।11
आचार्य तुलसी ऊँची कोटि रा संगीतज्ञ हा। गीतां
री भाव-प्रवणता अर विचारां रो गहराई सूं अलग छवि कालूयशोविलास में आवी है। उणारी
गीत भरी वाणी मॉय राजस्थानी रा रांगां रो भरपूर प्रयोग हुयो। ‘ओल्यूं’ राग मॉय कवि रो वात्सल्य भाव दैखी जै-
हाँ रे शासण नायक
री,
मधुरी-मधुरी बोली
प्यारी लागे रे तुलसी।
हाँ रे बोध
विधायक री
सेवां करतां
सुप्त भावना जागै रे तुलसी।12
डॉ. उमाकांत अपणै शोध आलेख ‘तेरापंथ का राजस्थानी प्रबन्ध काव्य’ मॉय कालूयशोविलास ग्रंथ री चरचा करता तका महान्
उद्देश्य री वाहक रचना बतावै। वे लिख्यो है- “कालूयशोविलास रे माध्यम सूं कवि आचार्य तुलसी ने अस्यो
नरश्रेष्ठ व्यक्ति रो चरित गान कियो, जिणरो जीवन वर्तमान समय मॉय मूल्यवान, नैतिक, मर्यादित जीवन जीकर लोक
मानस रे प्रेरणा रो स्रोत बण्यो रैवेला।”13
इण विधि सिगरी विशेषतावां रो अवलोकन पाछै यो
स्पष्ट कियो जा सकै कि कालूयशोविलास ग्रंथ परोपकार, विश्व मैत्री, अहिंसा, करूणा अर
विराग-भाव रो संदेस देवा वारो ग्रन्थ है, जिण रो काव्य नायक कालूगणी भारत री संस्कृति रो प्रतिबिम्ब है। यह रचना महान्
उद्देश्य री संवाहक होणे रे सागै अपणी काव्य-गरिमा सूं भी राजस्थानी साहित्य ने
समृद्ध करवा में बड़ो योगदान दियो है।
संदर्भ-
1. तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान, पृ.48
2. कालूयशोविलास, पृ.143
3. कालूयशोविलास, पृ.4
4. कालूयशोविलास, पृ.104
5. कालूयशोविलास, पृ.126
6. कालूयशोविलास, पृ.396
7. कालूयशोविलास, भूमिका
8. कालूयशोविलास, पृ.132
9. कालूयशोविलास, पृ.4
10. कालूयशोविलास,
पृ.168
11. कालूयशोविलास,
पृ.297
12. कालूयशोविलास,
पृ.350
13. तेरापंथ का
राजस्थानी को अवदान, पृ.209
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