भारत की यात्रा कराती है यह पुस्तक

 भारत की यात्रा कराती है यह पुस्तक

राजस्थान पत्रिका 24 अक्टूबर,2021 के अंक में प्रकाशित  

प्रकृति और जीवन का सौंदर्य चराचर जगत का नैसर्गिक आनंद है। यायावर मन यदि इसे यात्रावृत्त रूपी साहित्यिक विधा में प्रकट करता है, तब उसका मन एकांत से प्रकृति का साहचर्य प्राप्त कर स्व से विराट तक गतिमान हो जाता है। जहां उसे नदी के प्रवाह, आकाश के मेघ, सागर की लहरें, पहाड़ों की शृंखलाएँ, भव्य इमारतें एवं अन्य कलाओं से उसका साक्षात्कार अनुभूति का चरम मान होता है। रचनाकार की यह दृष्टि अपनी आयत्त अनुभूतियों के माध्यम से निस्संदेह सार्वजनीन हो जाती है।

 

डॉ.राजेश कुमार व्यास एक कला प्रेमी, रसज्ञ कवि होने के साथ-साथ समकालीन यात्रावृत्त लेखकों में उभरता हुआ नाम है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से प्रकाशित 'आंख भर उमंग' कृति एक दशक की यात्राओं का भाव भरा प्रस्फुटन है, जिसे लेखक ने बड़े मनोयोग से पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। यह यात्रा चंबल के जंगलों, नालंदा के खंडहर, नर्मदा की धाराओं, पहाड़ों की नैसर्गिक छटाओं के साथ-साथ भारत की लोक संस्कृति, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक अन्तर्यात्राओं को भी समाहित करती है, जहां प्रकृति,वास्तु शिल्प, इतिहास एवं कला का वैभव चाक्षुष बिम्ब के रूप में व्यक्त होता है।

 

पहाड़ों की यात्रा में रोमांच के साथ प्राकृतिक सुषमा का मोहक दृश्य लेखनी की गति को भी मंत्रमुग्ध कर देता है। भीमताल की यात्रा करते हुए वे लिखते हैं, " गाड़ी पहाड़ से नीचे उतर रही है। पेड़ों का झुरमुट... और बीच में इकट्ठा जल। बरखा के पानी को जैसे धरित्री ने अपनी छोटी सी अंजुरी में बहुत जतन से समेट लिया है।" यह भावमयी क्षिप्रता आकर्षण पैदा करती है।


यात्रा के साथ साथ लोक संस्कृति से तादात्म्य हमारी आंतरिक लय को भी गतिमान कर देता है। 'दहकते अंगारों पर सबद नाद' शीर्षक यात्रावृत्त में जसनाथी नृत्य का वर्णन करते हुए लेखक स्वयं चमत्कृत होकर लिखते हैं, "लाल दहकते अंगारों पर जसनाथी नृत्य। तेज होते वाद्यों की गति और शब्द नाद के साथ नर्तक अपनी धुन में मगन। औचक एक नर्तक अंगारे को हाथों में उठा मुँह में डाल रहा है तो दूसरा उसे अपनी हथेली में ले मजीरे की तरफ फोड़ रहा है।" यह वर्णन पाठक को भी रोमांचित कर देता है।

 

डॉ. व्यास प्रकृति के चितेरे हैं। ऐसी स्थिति में पदार्थवादी दुनिया के प्रति विकर्षण स्वाभाविक है। कश्मीर की वादियों में विचरते हुए अपने मन की थाह लेते हुए कह उठते हैं, "शहरीपन से आए बदलावों पर जब भी विचारता हूँ, मन जैसे बुझ जाता है। ढूंढने लगता हूँ, इस गडरिए जैसी उस मस्ती को जो अब न जाने कहाँ लोप हो गई है।"

इसी तरह कवि मन, कला हृदय लेखक ने गाँव, नगर, दुर्ग, नदियों, पहाड़ों, मंदिरों से लेकर खेत खलिहानों तक की यात्रा को जीवंत रूप में प्रवाहमयी शैली के साथ प्रस्तुत किया है। उल्लेखनीय है कि यात्रावृत्त रिपोर्ताज शैली में ना लिखकर भाव-भरी रसात्मक शैली में प्रांजल शब्दावली के साथ है, जिसमें पाठक लेखक के साथ ठहरता हुआ यात्रा करता है। लघु आकार में अनावश्यक अलंकरण से बच पाना लेखक की उदारता का प्रमाण है। पाठकों की सीमाओं का ध्यान रखना भी लेखक की सिद्धहस्तता को प्रकट करता है। छिहत्तर यात्रावृत्त को 250 पृष्ठों में समाहित कर संपूर्ण भारत की परिक्रमा का प्रयास प्रशंसनीय है।

 


 पुस्तक: आँख भर उमंग

लेखक: डॉ. राजेश कुमार व्यास

प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत

पृष्ठ संख्या: 250

आमंत्रण मूल्य: 310/-

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