स्मरण : प्रेमचंद
प्रेमचंद भारतीय स्वाधीनता-संग्राम काल के लेखक हैं। प्रेमचंद की
दृष्टि में वह स्वतंत्रता अधूरी है, जब तक कि भारतीय समाज में किसान, मजदूर और नारी शोषण की शिकार
हैं। अंध-रूढ़ियाँ मानव-मात्र को पराधीन किए हुए हैं तथा हमारी विलासी मानसिकता
धरोहर को खो रही हैं । इसी दृष्टि से उनके लेखन के आयाम बने। उनका उपन्यास 'सेवासदन' नारी की पराधीनता और झूठी
नैतिकता के तले शोषण की पराकाष्ठा को उजागर करता है, तो 'निर्मला' अनमेल विवाह और स्त्री के प्रति
अनुदार दृष्टि को प्रकट करता है। 'प्रेमाश्रम' और 'गोदान' किसानों के जीवन की त्रासदी को
मार्मिक ढंग से व्यक्त करता है, वहीं सामाजिक ताने-बाने की मर्मान्तक गाथा भी है। 'रंगभूमि' वैश्वीकरण और पूंजीवादी दृष्टि
की भयावहता को प्रकट करते हुए कृषि जीवन की द्वंद्वात्मकता को भी अभिव्यक्त करता
है। प्रेमचंद की कहानियाँ भारतीय समाज की यथार्थपरक सच्चाई को उजागर करती हैं, वही उन मूल्यों का भी संरक्षण
करती है जो किसी न किसी रूप में भारत की आत्मा में हैं। उनकी दृष्टि में ग्राम्य
जीवन ही प्रधान रूप से भारत का वास्तविक चित्र है, क्योंकि जिस देश के अस्सी फ़ीसदी लोग गांवों में बसते हों
तब साहित्य में उनका चित्रण होना स्वाभाविक है, उनका सुख राष्ट्र का सुख और
उनका दुःख राष्ट्र का दु:ख है।
प्रेमचंद एक शताब्दी बाद भी प्रासंगिक हैं, कतिपय कारक अवलोकनीय हैं-
1. प्रेमचंद के पाठक प्रत्येक वर्ग में हैं। वे हिंदी साहित्य के ऐसे लेखक हैं, जो पहली कक्षा से पीएच.डी तक पढे जाते हैं। रामविलास शर्मा लिखते हैं कि पुस्तकालय की पुस्तकों पर अचार और हल्दी के धब्बे इस बात का सूचक हैं कि वे गृहिणियों द्वारा भी पढ़े जाते थे।
2. प्रेमचंद पूर्व उपन्यास तिलस्म और काल्पनिक कथाओं पर आधारित थे अथवा इतिहास की घटनाओं पर आधारित। उन्होंने जीवन के यथार्थ के धरातल पर उतर कर कथानकों का निर्माण किया। उपन्यास और कहानी के पात्र आज भी भारतीय समाज में हमारे सामने दिखाई दे जाते हैं, इस दृष्टि से वे कालजयी लेखक के रूप में उपस्थित होते हैं।
3. प्रेमचंद का संपूर्ण कथा-साहित्य यथार्थ दृष्टि पर होते हुए भी आदर्श की ओर उन्मुख रहा। उन्होंने हिंसा का सहारा लेकर क्रांति का घोष नहीं किया, बल्कि सामाजिक विसंगति का चित्र प्रस्तुत कर मानवता को झकझोर दिया। वे चाहते थे कि समाज अपने किए हुए पर आत्मग्लानि महसूस करे और नए समाज का निर्माण करे। 'ठाकुर का कुआँ' जैसी कहानी इसका उदाहरण है।
4. प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में भारतीय परिवार को बहुत महत्व दिया। 'बड़े घर की बेटी', 'ईदगाह', 'बूढ़ी काकी' आदि कहानियाँ भारतीय परिवारों की संरचना को और प्रगाढ़ करती है। हामिद की परवरिश तीसरी पीढ़ी के हाथों होना और उसका लगाव आज भी भारतीय समाज की आवश्यकता है।
5. वैश्वीकरण का चित्र खींचते हुए उन्होंने एक शताब्दी पूर्व ही बाजार का दृश्य हमारे सामने रख दिया। बाजार किस प्रकार ललचाता है, 'ईदगाह' कहानी उसका एक अच्छा उदाहरण है। उस बाजार में भी व्यक्ति बच सकता है, परन्तु उसके लिए हामिद जैसा कलेजा चाहिए।
प्रेमचंद की विशिष्टता इस बात में है कि उन्होंने पहली बार अपने कथानक के नायक होरी, जालपा, और सूरदास जैसे सामान्य व्यक्तियों को बनाया। एक शताब्दी बाद भी प्रेमचंद प्रासंगिक हैं। मेरा मत है कि जब भी समाज किसी राह पर उलझन में होगा, प्रेमचंद वहाँ उसका समाधान देते नजर आ जाएँगे।
-डॉ.राजेंद्र कुमार सिंघवी
1 comment:
उपन्यास सम्राट के बारे में आपने अच्छा लिखा है।
Post a Comment