वैश्विक भाषिक
प्रतिमान एवं हिन्दी
नई सदी नवनवोन्मेषशालिनी प्रज्ञा-स्फोट की
प्रतिध्वनि-सी प्रतीत हो रही है। वैश्वीकरण के दौर में संपूर्ण जीवन ‘वैश्विक ग्राम’ में सिमट कर रह गया है। भौगोलिक दूरियाँ, प्राकृतिक दुरुहता अथवा भाषायी अवरोध अब इतिहास
की किवदन्तियाँ मात्र हैं। वर्तमान में राष्ट्रों की शक्तिमत्ता का आधार सैन्य शक्ति से अधिक आर्थिक संपन्नता है। ‘बाज़ार’ नई दुनिया के केन्द्र में है, इसी कारण चीन और
भारत 21 वीं सदी के नेतृत्वकर्ता
बन रहे हैं। इसमें भी भारत अपनी लोकतांत्रिक विशिष्टताओं, समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराओं, उदारवादी-सर्वसमावेशी वृत्ति, प्रचुर प्राकृतिक सम्पदा, निपुण एवं प्रशिक्षित युवा-शक्ति के कारण दुनिया के आकर्षण
का केन्द्र बन रहा है।
जब कोई राष्ट्र अपने गौरव में वृद्धि करता है
तो वैश्विक दृष्टि से उसकी प्रत्येक विरासत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। परम्पराएँ,
नागरिक दृष्टिकोण और भावी संभावनाओं के केन्द्र
में ‘भाषा’ महत्त्वपूर्ण कारक बनकर उभरती है, क्योंकि अंततः यही संवाद का माध्यम भी है।
भारतीय दृष्टि को समझने के लिए स्वाभाविक रूप से हिन्दी भाषा वैश्विक आकर्षण का
केन्द्र बनी हैं। नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार हिन्दी विश्व की दूसरी सर्वाधिक बोली
जाने वाली भाषा बन गई है। यह संकेत इसकी महत्ता को रेखांकित करते हैं कि हिन्दी आज
विश्व-भाषा बनने की ओर अग्रसर है।
जहाँ तक विश्व भाषा के स्तर को प्राप्त करने का
प्रश्न है, तो उसके कुछ निश्चित
प्रतिमान हैं। यथा-विश्व के अधिकांश भू-भाग पर भाषा का प्रयोग, साहित्य-सृजन की सुदीर्घ परम्परा, विपुल शब्द-संपदा, विज्ञान-तकनीक एवं संचार के क्षेत्र में व्यवहार, आर्थिक-विनिमय का माध्यम, वैज्ञानिक लिपि एवं मानक व्याकरण, अनुवाद की सुविधा, उच्च कोटि की पारिभाषिक शब्दावली एवं स्थानीय आग्रहों से
मुक्त होना आदि गुण आवश्यक है। इन प्रतिमानों के आलोक में हिन्दी की विशिष्टताओं
और सामथ्र्य का मूल्यांकन वर्तमान संदर्भों में समीचीन प्रतीत होता है।
हिन्दी और विश्व भाषा के प्रतिमानों का यदि
परीक्षण करें तो न्यूनाधिक मात्रा में यह भाषा न केवल खरी उतरती है, बल्कि स्वर्णिम भविष्य की संभावनाएँ भी प्रकट
करती है I कुछ विशिष्टताओं का उल्लेख इस प्रकार है-
आज हिन्दी का प्रयोग विश्व के सभी महाद्वीपों
में प्रयोग हो रहा है। डाॅ. करुणा शंकर उपाध्याय के मतानुसार लगभग 140 देशों में हिन्दी का प्रचलन न्यून या अधिक
मात्रा में है। सन् 1999 में टोकियो
विश्वविद्यालय के प्रो. होजुमि तनाका ने ‘मशीन ट्रान्सलेशन समिट’ में भाषायी आँकड़े
पेश करते हुए कहा कि विश्वभर में चीनी भाषा बोलने वालों का स्थान प्रथम, हिन्दी का द्वितीय है और अंग्रेजी तीसरे
क्रमांक पर पहुँच गई है। डाॅ. जयन्तीप्रसाद नौटियाल ने भाषा शोध अध्ययन-2005 के आधार पर हिन्दी जानने वालों की संख्या एक
अरब से अधिक बताई है। आज भारतीय नागरिक दुनिया के अधिकांश देशों में निवास कर रहे
हैं और हिन्दी का व्यापक स्तर पर प्रयोग भी करते हैं, अतः यह माना जा सकता है कि अंग्रेजी के पश्चात् हिन्दी
अधिकांश भू-भाग पर बोली अथवा समझी जाने वाली भाषा है।
हिन्दी में साहित्य-सृजन परम्परा एक हजार वर्ष
से भी पूर्व की है। आठवीं शताब्दी से निरन्तर हिन्दी भाषा गतिमान है। पृथ्वीराज
रासो, पद्मावत, रामचरित मानस, कामायनी जैसे महाकाव्य अन्य भाषाओं में नहीं हैं। संस्कृत
के बाद सर्वाधिक काव्य हिन्दी में ही रचा गया। हिन्दी का विपुल साहित्य भारत के
अधिकांश भू-भाग पर अनेक बोलियों में विद्यमान है, लोक-साहित्य व धार्मिक साहित्य की अलग संपदा है और सबसे
महत्त्वपूर्ण यह महान् सनातन संस्कृति की संवाहक भाषा है, जिससे दुनिया सदैव चमत्कृत रही है। उन्नीसवीं शती के
पश्चात् आधुनिक गद्य विधाओं में रचित साहित्य दुनिया की किसी भी समृद्ध भाषा के
समकक्ष माना जा सकता है। साथ ही दिनों-दिन हिन्दी का फलक विस्तारित हो रहा है,
जो इसकी महत्ता को प्रमाणित करता है।
शब्द-संपदा की दृष्टि से हिन्दी में लगभग
पच्चीस लाख शब्द प्रचलन में हैं। ये शब्द संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश परम्परा
से विकसित, आँचलिक बोलियों में
व्यवहृत, उपसर्ग-प्रत्यय, संधि-समास से निर्मित हैं, जिसका सुनिश्चित वैज्ञानिक आधार है। साथ ही
विदेशी शब्दावली के अनेक शब्द जो व्यावहारिक रूप से प्रचलन में है, उनमें अंग्रेजी, फारसी, अरबी, पुर्तगाली, स्पेनिश, फ्रेंच आदि
भाषाओं से गृहीत भी हैं। यह गुण हिन्दी की उदारता को रेखांकित करता है। विश्व की
सबसे बड़ी कृषि विषयक शब्दावली हिन्दी के पास है, जो वैश्विक धरोहर है। दूसरी भाषाओं के साथ तादात्म्य
स्थापित करने में हिन्दी की भाषिक संरचना लोकतांत्रिक है। इसकी वाक्य-संरचना में
आसानी से दुनिया की किसी भी भाषा का शब्द समायोजित होकर अर्थ प्रकट कर देता है। यह
विशिष्टता हिन्दी विशालता का प्रमाण है।
हिन्दी की लिपि-देवनागरी की वैज्ञानिकता
सर्वमान्य है। लिपि की संरचना अनेक मानक स्तरों से परिष्कृत हुई है। यह उच्चारण पर
आधारित है, जो उच्चारण-अवयवों के
वैज्ञानिक क्रम- कंठ, तालु, मूर्धा, दंत, ओष्ठ आदि से
निःसृत हैं। प्रत्येक ध्वनि का उच्चारण स्थल निर्धारित है और लेखन में विभ्रम की
आशंकाओं से विमुक्त है। अनुच्चरित वर्णों का अभाव, द्विध्वनियों का प्रयोग, वर्णों की बनावट में जटिलता आदि कमियों से बहुत दूर है।
पिछले कई दशकों से देवनागरी लिपि को आधुनिक ढंग से मानक रूप में स्थिर किया है,
जिससे कम्प्यूटर, मोबाइल आदि यंत्रों पर सहज रूप से प्रयुक्त होने लगी है।
स्वर-व्यंजन एवं वर्णमाला का वैज्ञानिक स्वरूप के अतिरिक्त केन्द्रीय हिन्दी
निदेशालय द्वारा हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण भी किया गया, जो इसकी वैश्विक ग्राह्यता के लिए महत्त्वपूर्ण कदम है।
हिन्दी में पिछले कई वर्षों से विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी विषयक उत्तम कोटि की पुस्तकों का अभाव था, लेकिन नई सदी में अनेक विश्वविद्यालय, केन्द्रीय संस्थाओं आदि ने इस दिशा में विशेष
कार्य किया। वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा मानक पारिभाषिक शब्दावली का
निर्माण किया, ताकि लेखन में
एकरूपता रहे। आज संचार के क्षेत्र में तेजी से हिन्दी शब्दावली का प्रयोग बढ़ रहा
है। यहाँ तक कि उच्चारण के आधार पर यंत्रों पर मुद्रण हिन्दी के प्रसार का लक्षण
है। अभियांत्रिकी एवं चिकित्सा के क्षेत्र में हिन्दी का प्रयोग निरन्तर जारी है,
अच्छा साहित्य निरन्तर प्रकाशित हो रहा है।
निकट भविष्य में यह अभाव भी नहीं रहेगा, ऐसी आशा की जा सकती है।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक संदर्भों, आर्थिक गतिविधियों एवं सांस्कृतिक विनिमय के
क्षेत्र में हिन्दी ने भारतीय उपमहाद्वीप का नेतृत्व किया है। अन्तर्राष्ट्रीय
मंचों पर भारतीय नेताओं ने हिन्दी को समय-समय पर केन्द्र में रखा और संयुक्त
राष्ट्र संघ में अब यह धारणा बनी है कि हिन्दी दुनिया की एक महत्त्वपूर्ण भाषा है।
आर्थिक उन्नति की दृष्टि से भारत तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, दुनिया के लिए एक करोड़ से अधिक का बाजार है और
अपने उत्पाद के प्रचार के लिए हिन्दी भाषा उसके आर्थिक लाभ की कुंजी है, अतः विज्ञापन से लेकर आर्थिक जगत की समस्त
गतिविधियों में हिन्दी को समुचित दर्जा मिला है। टेलीविजन, कम्प्यूटर, मोबाइल एवं
मीडिया में हिन्दी की लोकप्रियता भविष्य के लिए अच्छे संकेत प्रदान करती है। गूगल,
माइक्रोसोफ्ट एवं अन्य कंपनियों ने हिन्दी के
व्यापक जनाधार को देखते हुए अनेक सॉफ्टवेयर
हिन्दी की दृष्टि से तैयार किए, परिणाम स्वरूप इंटरनेट पर हिन्दी तेजी से फैल रही है।
वैश्विक स्तर पर किसी भाषा के स्तर निर्धारण
में उसकी वैज्ञानिकता एवं मानकता का आधार महत्त्वपूर्ण होता है। इस दृष्टि से
हिन्दी का मानक व्याकरण है। शब्द रचना की दृष्टि से संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, अव्यय आदि का वैज्ञानिक विवेचन है। वाक्य संरचना के निश्चित
नियम है, शब्द-शिल्प प्रक्रिया का
विवेचन किया गया है, साथ ही व्याकरणिक
कोटियों की विशद् विवेचना की गई है। मानकता के कारण ही कम्प्यूटर आदि के लिए यह
अनुकूल बन गई है। अनुवाद के लिए अच्छे साॅफ्टवेयर तैयार हो गए हैं और भाषा को
समझने के लिए यह मानक व्याकरण पर्याप्त दिशा प्रदान करता है।
हिन्दी को आज भारतीय उपमहाद्वीप के देश- नेपाल,
भूटान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान,
बांग्लादेश आदि में लोकप्रियता है, वहीं संपूर्ण भारत में यह प्रमुख संपर्क भाषा
भी है। सुदूर इण्डोनेशिया, सूरीनाम, मलेशिया, मारीशस, सुमात्रा,
जावा, बाली आदि देशों में बहुतायत में बोली जाती है। यूरोप एवं अमेरिका-कनाड़ा में
हिन्दी भाषियों की तेजी से अभिवृद्धि हो रही है। मध्य एशिया में इसका सांस्कृतिक
प्रभाव रहा है तो द.अफ्रीका आदि में राजनीतिक साहचर्य से यह समान रूप से लोकप्रिय
हैं। यूनेस्को के अनेक कार्यक्रम हिन्दी में हैं। विश्व के अनेक क्षेत्र- मारीशस,
सूरीनाम, लंदन, त्रिनिदाद,
न्यूयार्क आदि में विश्व हिन्दी सम्मेलन सफलता
पूर्वक आयोजित हो चुके हैं। इसी तरह भारतीय- सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा
सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से हिन्दी को वैश्विक गरिमा प्रदान करने का प्रयास जारी
है। महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा तथा अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय, भोपाल की स्थापना भी इसी दृष्टिकोण पर आधारित है। संयुक्त
राष्ट्र संघ की भाषा में हिन्दी को स्थान दिलाने का प्रयास जारी है।
अतः समग्र विवेचन उपरान्त यह स्पष्टतः कहा जा
सकता है कि भाषायी संरचना शब्द-संपदा, मानकता, लिपि की
वैज्ञानिकता, साहित्यिक उच्चता,
सांस्कृतिक विशिष्टता, व्यापक विस्तार की दृष्टि से हिन्दी अपना एकाधिकार प्रमाणित
कर चुकी है, जहाँ उसे वैश्विक
भाषा का स्तर मिल सकता है। परन्तु विज्ञान, तकनीक एवं संचार के क्षेत्र में हिन्दी की मानक शब्दावली को
और विस्तारित किए जाने की आवश्यकता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण अवरोध भारत में
राजनैतिक लाभ की दृष्टि से हिन्दी का जानबूझकर विरोध करने से वैश्विक स्तर पर इसकी
गरिमा को ठेस पहुँचती है, इसे समझना होगा।
यदि सर्वसम्मति से इसे संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा का अधिकार मिल जाता है तो
विश्व-पटल पर यह भाषा अपना वर्चस्व स्थापित कर सकती है।
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1 comment:
Nice
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